बाल - भोजप्रबन्ध | Baal - Bhojaprabandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुन्दरलाल शर्मा द्विवेदी - Sundarlal Sharma Dvivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चीधा परिच्छेद ! १७
तरह घकावट दूर फरफे सुस्र देती है, चारों ओर कोर्ति
फँताती हैं और लद्षमी को बढाती दै। विद्या कल्पवृत्ष की
लता क्री वरह मनुष्य के कौन कौन काम सिद्ध नहीं ऊरती ?
अथातव ससार फे जितने काम ह वे सब विद्या से ही दीक
पनते हैं। प्रिना विद्या के कोई काम ठीक ठीक सिद्ध नहीं होता।
ऊपर कही हुई तियया फी मद्दिमा सुन कर राजा ने उस
ब्राह्मण को ग्रच्छी जाति के दस घाडे दिये । राजा की सभा
में घुद्ठिसागर नामक मन्नी वेठा हुआ घा। उसने राजा से
फ्रद्दा कि देव | इस पंडित से भोज की जन्मपत्री के विपय में
पृछिए 1 तब राज़ा मुब्ज ने ब्राह्मण से कद्दा कि भोज की
जन्मपयों तिचारिए। नाह्मण ने कहा कि भाज की मेरे पास
घुलाइएण । तय राजा ने सर्वाइ्नसुन्दर भाज का अपने एक शूर-
वीर नौफर द्वारा पाठशाला से घुलवाया | भाज आया और
अपने पिता की नाई सुब्ज का विनयपूर्वक अ्रणाम करके सडा
हो गया । भाज की छवि देस कर सभा के सब मनुष्य मोहित
हो गये | उनकी ऐसा मसाहछम होने लगा माने भूसण्टल पर
राजा इद्र आगया है और कामदेव ने तथा सौभाग्य ने माना
शरीर थारण किया है ।
बस पण्डित ने भाज को देख कर राजा मुब्ज से कहा कि
है गाजन् | भोज का भाग्योदय फहने में कह्मा भी समर्थ
नहीं हैं । त्रह्मा भी नहीं वतला सऊते हैं तो भत्ा मैं एक छोटा
सा आहाण क्योंकर कद सकता ह ? फिर भो अपनी बुद्धि के
र्
User Reviews
No Reviews | Add Yours...