महाबंधो | Mahabandho

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Mahabandho by श्रमण श्री फूलचन्द्र - Shraman Shree Foolchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उफकस्ससत्थाणबंधसण्णियासपरूचणा ९, णिमि० शिय० संखे०भागू० । दोसंघ०-उज्जो० सिया बं० सिया अबं० । [ यदि बं० णिय०] संखेज्ज ० भागू० । अद्धशारा० सिया० | तंतु०। एवं अद्धणारा० । एवं वामण० । णवरि असंपत्त ० सिया० संखेज्ज०भागू० | खीलिय० सिया बं७ | त॑ तु० | एवं० खीलिय० । १७, ओरालि०अंगो० उ>«०दि*बं० तिरिक्खग०-पंचिदि०-ओरालि०-तेजा ७- क०-हु डसं »-असंप ०-वण्ण «० ४-तिरिक्खाणु ०-अगु ० ४-पसत्थ ०-तस ० ४-अधिरादिद्य ०- णिमि० णिय«७ ब॑ | त॑ तु० | उज्जो० सिया» | ते तु०। एवं असंप० । १८, वज्जरि० उक्क७ट्ठिदिबं>- पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा०-क ०-ओरालि० अंगो ०-वएण ० ४-अगु ० ४-नस ० ४-एिमि० शिय० बँ० | णि० अणु» दुभागू० । तिरिक्खगदि-हु ड ०-तिरिक्खाणु ०-उज्जो »-अप्पसत्थ »-अथिरादिद्द० सिया बं० सिया न्‍्यून स्थितिका बन्धक होता है। दो संहनन ओर उद्योत'प्रकृतियोंका कदाचित्‌ बन्धक होता शोर कदाचित्‌ अ्रबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे अलुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक द्वोता है। श्रर्धनाराचसंहननका कदाचित्‌ बन्धक होता है ओर कदाचित्‌ अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट बन्धक भी होता है ओर अजु॒- त्कृष्ट बन्धक भी होता-है। यदि अनुत्कृष्ट बन्धक होता है तो नियमसे एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्‍्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार अधो- नाराचसंहननके श्राश्रयसे सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार वामन संस्थानके आश्रयसे सबश्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यह असम्प्राप्तत॒पाटिका संहननका कदाचित्‌ बन्धक होता है ओर कदाचित्‌ अ्रबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है। कीलक सहननका कद्ाचित्‌ बन्धक होता है ओर कदाचित्‌ अबन्धक होता है। यदि बन्धक है तो उत्कृष्ट भी बाँधता है ओर अलुत्कृष्ट भी बाँधता है। यदि अनुत्कृष्ट बाँधता है तो एक समय न्यूनसे लेकर पल्य- का असंख्यातवाँ भाग न्‍्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार कीलक संहननफे आश्रयसे सन्निकर्ष जानना चाहिए। १७, ओदारिक आइ्रोपाह़की उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यश्वगति, पश्चेन्द्रियजाति, श्रोदारिक शरीपर, तेजसशरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड्संस्थान, असम्प्राप्ता- स्पाटिकासंहनन, वर्णचतुष्क, तियश्चगत्यानुपूर्वी, अग्ुरुलघुचतुष्क, प्रशस्तविद्दायोगति, असचतुष्क, अस्थिर आदि छुदह ओर निर्माण प्रकतियाँका नियमसे बन्धक होता है जो उत्कृष्ट भी बाँधता है और अनुत्कृष्ट भी बाँधता है | यदि अलुत्कृष्ट बाँधता है तो एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवा भाग न्‍्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है। उद्योत प्रकृतिका कदाचित्‌ बन्धक होता है ओर कदायित्‌ अ्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट भी बाँधता है ओर अनुत्कृष्ट भी बाँधता है। यदि अलुत्कृष्ट बाँधता है तो एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्‍्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार अस- म्पराप्तार॒पाटिकासंहननके आश्रयसे सन्निक्ष जानना चाहिए । १८. वज्नर्षभनाराचकी उत्कृष्टस्थितिका बन्ध करनेवाला जीव पशञ्चेन्द्रिय जाति, ओदा- रिकशरीर, तैज्सशरीर, कार्मण शरीर, श्रोदारिक श्राक्नोपाड़, वर्णचतुष्क, श्रगुरुलघुचतुष्क, असचतुष्क ओर निर्माण प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है ज्ञो नियमसे अनुत्कृष्ट दो भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । तियेश्वगति, हुण्डसंस्थान, तिय॑श्वगत्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहद्योगति और अस्थिर आदि छु्द प्रकृतियोंका कदाचित्‌ बन्धक होता है ओर




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