सुकान्त के सपनों में | Sukant Ke Sapano Men

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Book Image : सुकान्त के सपनों में  - Sukant Ke Sapano Men

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जेई का मुंह सीघा कर मेंघाधुध चलाना शुरू कर दिया। टिबुडी ने पाया कि सामने जैसे कोई है ही नही। वह जब जेई चला रही थी, तभी तोनो छायाआ ने अपन-अपने माथे भिडाए और पलटकर सीब की तरफ सरकने लगी थी । “बात तुम मुदों की मेरे बापू को आने दो ” ठिकुडी अंधेरे में अनुमान से उनके पीछे नजरें दोडा रही थी और उनकी जूतिया की चर- चू वो ही गालियाँ सुता रही थी। आखिर हॉफकर माँचे पर बैठ गयी। जेई को माँचे की ईस से टिकाकर सास लेने लगी। सास सेभली तो बतरह गरमी लगने लगभी। लगा कि परसेव से नहा गयी है। यू ही बैठे बैठे उसकी रुलाई फूट पड़ी अपनी दोनो हवेलिया से अपनी दाना आरखें ढाप ली टिवुडी ने । तारे अपनी चाल चलते गए, रात अपनी चाल। टिकुडी की जाखा मे फिर नीद नही लौटी । वह कुछ देर माँचे पर पसरे रहती, फिर उठकर घढ़ जाती । उप्तकी इस उठ बँठ में ही पूरव बी तरफ से सुरज ने अपना मूंह निकाल लिया। धार, झोपडे, रूुख-दाड, घडे और आसपास वी हर 'ीज उजास मे धीमे घोमे चरूढ होने लगी और रोही वो चिडकलियों ने चोच खोल खोलकर उजास का जम गावा शुरू किया। टिवुडी नो अब जावर पूरा ध्यावस्त हुआ। उत्तजी नजर दूर धारा के बीच से आते कच्च रास्ते पर वेघकर रह गयी। पहली, दूसरी या पता नहीं क्सि गाड़ी म पर स बोई जरूर आा जाएगा। उसने मन ही मन वापूजी की शिवरण की, कि आज दापू ही ठीवः हाकर सेत आ जाएँ। दिश्रुड्दी पूरी रात मन ही मन अपना यह निश्चय दोहराती रही थी दि इन मरो की विज्ञायत आज वह बापू के आगे जरूर करेगी । ययू ही नही मानेंगे। घापु की एफ दकाल् पर ही इनका पित्त पाणी धिर हा जाएगा। गाडियाँ गान लगी थो। एक, दा पंच, साव पता नहीं दिवनी गाडियाँ गुतरी कि अथानक उसे अपनी गाडी आयी दौख पढ़ी । और भी मस्ती बात यह थी हि गाडी या बापू चदा रहे थे । जान बया हुमा शि बापू वा चहरा जैस हो पास आता जाम पढा, टिठुडी की छातो दहकत सलग्री । यह यहू बया बहेगो बापू से? सगा जैस खुद अरत से हो काई आहट / 25




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