हिन्दी साहित्य का प्रवृत्तिगत इतिहास | Hindi Sahitya Ka Pravrittigat Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डा० प्रतापनारायण टण्डन-ज मे सथाज़ शिक्षा खीर एज (अतिम) तथा एस ए० घड्नऊ विश्वविद्यालय मे हई। हि ही साहि ये सम्मेतत प्रयोग हारा आयाजि) प्रधमा से यम्ा (विशारत) ता उमा (सा परत) परी कए उत्तीग को । सा १८२८ मे जयनऊ विश्वविद्यायय से हिंदी उउ पात्त सं बता शिया विकाप्त शीयय प्रय व पर पी एच० डी० की उपाधि प्राप्त बी । तैयार विश्वविद्यायय से ही १८६३ मे समीला के मान जौर हि दी समीता फी विशि ट प्रयत्तिपाँ णीएय प्रय थे पर ही० तिटब्यी उपाधि प्राप्त की। उत्तत प्रव ध पर वयाऊ थिवविदायम चारा शत १६६३ था बोपणों रिसव प्राटय भी प्रतात जिया गया। प्राशित इृतियाँ आधुनिर साहित्य (तिब व संग्रत) सा्‌ १४१६ (प्रतागा-विद्यार्याीटर जयवेऊ) हिंदी उपयाप्त मं वा भावना प्रमचाद युग (साज रखता) से १६६ (प्रराशर-टि हो विभाग वेय्ननऊ विश्वविद्यालय) कॉडड (जनुवाल) संत १६५६ (प्रहाधप-प ये प्रगागन हवा) रीता वी बात (उपयास) सन १६५१७ (प्रद्वया-प्रम प्रताप पघाऊ) हिंरी साहित्य. विछना दशा (आजोवता) सत १ ५७ (प्रात टि टी साहित्य भण्यर जखनतऊ) हिंओी उपयारा से वयाशिय का विशास्त (शाउ्प्रयध) सा १६४८ (प्रकाशर॒--हि टी साहित्य मग्यर तखनऊ) अ धो दध्टि (उपयास) सन १६६० (प्रकाशक--राजपात 7 6 राह लि ती) व जो हतरादे (वहानी संग्रह) सन १६६० (प्रकाशना-हिं दी साहिय भण्टार वघनऊ) हिठी उप याक्त प्र उदभव और विकस (गातप्त अवध) से १८. (अराशा-टिव साहिय भगडार वयनऊ) रीता (पराक्ट सस्त्रण) सन १६६ (प्रताशव-हिंल पराय्ट बुत नं हिल्वा) रवग यात्रा (नाटक) संत १-६२ (प्रराशर-भारती राहिय मटर लिए) दुपहले पाना की बदें (उपयास) सने १.६४ (प्रवाजर-विवेत् प्रवायाता जघतऊ) शूय की पूति (कहानी संग्रह) सत १६६४ (प्रव।शा-विंय प्रवाशत लयनऊ) नवाब बनशोआ (एकात्री संग्रह) सन १६६४ (प्रस्‍ाश €-विय्र प्रराशन तयतऊ) हि) उरयात्ष कजा सन १६६५ (प्रतराशए-हि टी समिति 7/०प्र शासन उपघनऊ) रीता (अग्रजी अनुवाट) सन १४६४ (प्रकराशक-ज का थीटा पर वरेशस वक्ता) पयरोते प्रति रूप (बिटेश बी 7वितराए) रान १६६२ (प्रहाधव-विवव' प्रवाणन तखनऊ) चासता की अबुर (उपयास) सन १८ ६ ( प्रताशा-पाहिय ३द् प्रताशन दिल्‍ती ) जभिशला (उपयास) सन १..६६ (प्रताशर-साहित्य कद्ध प्रसाशन टहिल्ली) नाधिकार नाप्त रोता (उतरा जनुवाद) सन १८६९७ हि) उप पास का परिचयात्मक इतिहास (आजबोचना) सन १ ५७ [प्रयाशर--वितत प्रतराशन उयनऊ) तथा हिंदी साहि ये का प्रवत्तियत इतिहास ३ साय (जावाचना) सन १६६८ (प्रशाशर--विवेत प्रवाशन वखतऊ) जाहि। उपयवत मेंस हिंदी उर यास से क्या शि प्‌ वा विकास तथा भाधी दष्टि नामक रचागाए उत्तर प्रदेशीय शासन द्वारा पुरस््वत वी गया। समोक्षा के मात और हि दी सप्रोध। फी विशिषर प्रवत्तियाँ पर उत्तर प्रदेश सरवार द्वारा ४० ० ?₹ वा अनुटान तथा २४ ०० ₹ वा विश पुरस्कार भी प्रदान विया गया । रसा इृति पर १९ ० ०₹ वा श्री हरजोमल डालामया पुरस्कार भी थदान किया गया। संपादन पाय जपनऊ से प्रवातित नई कहानी सक्‍लत (१८२६) वा संयुक्त रूप से सपातन विया। सन १८२१ से ११२८ तक युग चेतना (जखनक] के राम्पा दे मण्दव से रत। आकाशदाणी स डट दजन से अधिता बटानियाँ बानाएँ तथा नाटबः आहि प्रसारित हा युक ह। सन १७६४ मे इटली ( यारप ) की यात्रा वी तथा रोम विस्वेत्या पीझा तथा पलोरेंस आदि एतिहासित नगरा हा यमण किया! ध्यापा अकबर १८५८ वपनऊ विश्वविद्यालय के हिटी विभाग म प्रायापक के रूथ में कार्य कर रहे है ।




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