शब्द - शक्ति | Shabd Shakti

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Shabd Shakti by डॉ० पुरुषोतम दास अग्रवाल - Dr. Purushotam Das Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पब-पीटिवा दर है परन्तु उनके सम्बंध मे उनके टीकावारो में बहुत सी विम्थदन्तिया प्रचल्ति हूं । इन किम्बर्दा तया कि प्रामाणकता के सम्वघ मे मतभेद है । परन्तु इतना लो ना विसी साय के कहा जा सकता है दि. मम्मद कारमीरी थे और वाइमीरी दश्न के वौच रहकर उनके साहित्यिक व्यत्तिस्व का विवास भी हुआ था । इस बात वी पुष्टि उनके इस ग्रथ से हो जाती है । इन पर शवदशन मी पूर्णरूप से प्रभाव है इसके प्रत्यभित्ता-दशन क॑ आधार पर ही उनके रस दशन वी स्थापना हुई है । इसे मम्मद और काइमीरी प्रत्यमित्ता दशन वे सम्दघ दा लान हो जाता है । आाचाय मम्मट वा सम्बघ भीमसेन दीक्षित ने (१६ वी. शती) काशी सभी स्थापित किया । इतना तो नि चत है कि सभी काइमीरी विद्वाद्‌ वाशी झाया करते थे परतु इसी आधार पर ठटे वहाँ का वासी ता बिसी भी दशा मे स्वीकार नहीं किया जा सकता है । हा इतना अवश्य है कि वे काशी छाते रहे होंगे तथा वहां रहबर अध्ययन विया होगा 1 प्रय--आचाय मम्मट की दो रचनाएं उपलब्ध हैं। इनमें प्रथम काव्यन्यवागा और दितीय शद-व्यापार विचार हे. इन दानों मे दूसरा ग्रथ काव्य प्रवागा वे द्वितीय उल्लास वा हो. और अधिक स्पप्टीकरण है । इनेवा प्रथम ग्रय बब्य प्रकेशा ध्वनि सम्प्रदाय वा एवं अत्यधिक प्रामाणिव एव प्रस्थान ग्रथ माना जाता है । इस ग्रथ म ध्वनि विरोधी सभी मता का खण्डन बरते हुय वाध्य सम्ब वी अय सम्प्रदाया को ध्वनि अग रूप म सिद्ध किया गया है और ध्वनि के अद्गीत्व वी स्थापना गई है। इम प्रकार इस अथ मे प्रचलित वव्य सम्च थी सभी घारणाओ वा समवय स्थापित विया जिया है। कि हे काव्य प्रकाश में कुल शै४२ वारिवायें और ६०३ उद्धरण हैं। इन वारिकाओं को दा उत्लासों मे विभाजित किया गया है । प्रथम उल्लास मे मगलाचरण मे राव दशन अन्तेदरति है। वाव्य प्रयोजन काव्य हेतुवाय लक्षण बौर बाय प्रवार वा प्रतिपादन क्या गया है । काव्य के उत्तम मध्यम और अवर भेद करने वाले ये प्रथम आच य थे । इनक पुव वाध्य सचा प्राप्त बरने के छिये अरवारो वी उपस्थिति अनिवाय थी अर्थात्‌ अल्कार युक्त रचना को ही वाव्य कहा जाता है । मम्मेद ये ध्वनि और बल्कारो वा समवय स्थापित विया है जवकि ध्वनिकार न वेवल ध्वनि का ही वि लेपण बिया है । ड्िंवीय उत्नास म गाय और अय का विदलेपण उपस्थित क्या गया है तीन श्रवार के अध (वाच्य लय व्यम्य) तीन कार के धन वाचक लक्षक




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