भक्तामरस्तोत्रम् | Bhaktamar Stotram

Bhaktamar Stotram by ज्ञानचंद्र - Gyanchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ भक्तामर स्तोत्र। यसस्तंतः सकलकाडमयतत्वंबी घा दटभमतबबडिप्टमिःसरलीकनाध स्तोचेजगचत्रितवचित्त ह रेचदार:, स्तोष्येकिलाइमपितं प्रथम जिनेद्रम ॥२॥ शादार्थ-4+ 5 ज्ञो । संस्तुत! 5 स्वृति किया गया। सकल * लगी | पाझाय (शास्म) तत्व न्‍्यथा्थेसार । बोध लज्ञान। उज्धत उत्पन्न हुईं । बुद्धि! +शान। पदु 5चतुर । छुरकोक ०रुपग। नाथ ८श्वामी। स्तोत्र ८स्तुत्तिः4 जगत संसार! बितय + तीन | अर्थात्‌ रुवर्ग मय (मनु प्यक्ोक) पाताल । चित (दिक)। हर ८हरते बाल्े | उदार >भच्छे | स्तोष्ये > स्तुति करता हूं। किल « निषुवय से | अद्दप्प्त । अपि भी | तं5उसको। प्रथम पहिले ।,जिनेन्द्र व्थादि नाथ॥ भम्वयार्थ--समस्त शास्त्र के तत्वज्ञान से उत्पन्न हुई जो बुद्धि उस करके चतुर जो इन्द्र उन करके तीन छोकों के विस,कों हरमने वाले उज्बेछ्त स्तोत्रों ले जो श्तति फिया गया हे उस भादि जिलेन्द्र फी में भी स्तुति करता हूँ ॥ भाषार्थ-इसर द्वितीय छन्द में फवि (आचार्य) से स्तोत्न रचने. की अतिशा करी है और यहां आचार कहते है फि इन्द्र जेले वुद्धिमान्‌ स्तोन्न कर्ता ,जिल प्रभु की स्त॒ृत्ति फरते हैं उस भगवान्‌ की में भी स्तृति फरने ऊगा हूं ॥ ह श्रतिपारगईंद्रादिकदेव । जाकी स्तति कीनी कर सेब ॥ शब्द मनोंहर अथ विज्ञाल । तिसप्रभ की परण गण माछूं।२॥ भादि पुरुष प्रथम पुरुष। आदिश जिन प्रथमत जिन्देव । आदि सुविध प्ररतार #कर्ममूमिके आदि मे विधिके कर्ता। घर्मघरंघर रूधर्म की धरा (भार) के घारणेबाढा 1 १--बतलुर + तत (नमन) भक्त जो छुर रवेववा। छधि८ शोभा | अन्तर ८ भीतर का। पाए तिमिर>पाप रूपो जल्घेर | बच >घाणी। काय ८ देह । भष संसार जरू# (कदचि) समूह । पतित>पिरे हुए। उद्धरण ्ूनिकाललेवा।.., २-“शुतिपारण 5 शास्त्र के पार जाने वाले | भतोहर «सत्दूर। विशाल ७ बहुत दिस्तार बाला । प्रभु स्वामी । गुणवाद गुणों की शाला: (गुण शमूह) ऐै- घर




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-11-24 11:38:44
    Rated : 8 out of 10 stars.
    category of the book is Religion/jainism
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