यौवन की भूल | Yauvan Kii Bhuul

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Yauvan Kii Bhuul by ज्ञानचंद्र - Gyanchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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योवन की भूल श्रीमती रोजमिटी ने आश्चयं से भह वना कर कहा--उइतनें समरे ! नहीं वावा ! 'तो फिर किस समय तक आप तैयार हो सकेगी ? न्तौ बजे |? “ओर इससे पहले नहीं ?' “नहीं, यह भी बहुत जल्दी है ।' वृद्ध तो हिचकिचाया था; पर दोनों छड़कों की प्रबठ इच्छा थी कि इस सुन्दरी को छे चलकर उसके सहवास का आनन्द ट्टा जाय । ओर इसी कारण यहं प्रोग्राम निश्चित हुआ था । उस दिन्‌, मंगख्वार को सब छोग समुद्र तट पर आये ; ठेकिन देर अधिक हो जाने के कारण इच्छानुसार शिकार न हो पाया । श्रीमती रोज॒मिखी को शिकार की अपेक्षा वह जल-मय संसार अधिक आनन्दप्रद प्रतीत हो रहा था। इसीलिए रोखेन्ड, दद्या कर चिद्या उठा था--धत्तेरी की ! अवृप्न हदय के ये शष्द्‌, इतनी देर के बाद एक मछली फैँसने, अथवा औरतों को साथ छने कीं बेवकूफी; दोनों भावों को अपने में रंजित किये थे । सन्ध्याकाठीन अंधकार को आते देख वृद्ध ने शासनयुक्त स्वर में कहा--अच्छा लड़कों; अब घर चलना चाहिए । पिएर और उरँ दोनों के मुख पर प्रसन्नता खेर गई । दोनों पानी से डोर खींच, अपनी-अपनी कटिया साण्ड कर, उसे एक काग र्मे खगा, एक किनारे रखते हए, पिता का अह निहदारने खगे ! १९




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