लेश्या कोश | Leshya Kosh

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Leshya Kosh by मोहन लाल बांठिया - Mohan Lal Banthiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्तावना जन दशन सक्षम और गहन ह तथा मूल सिद्धान्त ग्रन्थी मे इसका क्रमबद्धा विपयानु- क्रम विवेचन नहीं होने के कारण इसके अध्ययन मे तथा इसे समकने में कठिनाई होती है। अनेक विपयो के विवचन अपूर्ण--अधुरे हैं। अतः अनेक स्थल इस कारण से भी समझ मे नही आते हैं| अर्थ बोध की इस दुर्ग मता के कारण जेन-अजे न दोनों प्रकार के विद्वान्‌ जेन दशेन के अव्ययन मे सकुचाते हैँ | क्रमबद्ध तथा विपयानुक्रम विवेचन का अभाव जेन दर्शन के अध्ययन में सबसे बडी वाधा उपस्थित करता है--ऐसा हमारा अनुभव है। कुछ वर्ष पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक अजेन प्राव्यापक मिले | उन्होंने वत लाया कि वे विश्वविद्यालय के अन्तर्गत नरक! विपय पर एक शोध महानिवध लिख रहे हैं। विभिन्न धर्मों और दशनों भे नरक और नरकवासी जीवो के सम्बन्ध मे क्‍या वर्णन है, इसकी वे खोज कर रहे हैं तथा जेन दश न में इसके सम्बन्ध में क्या विवेचन किया गया है, इसकी जानकारी के लिए आये हें | उन्होंने पूछा कि किस भ्रथ में इस विपय का वर्णन प्राप्त होगा। हमे सखेद कहना पड़ा कि किसी एक भअ्रथ मे एक स्थान पर पूरा वर्णन मिलना कठिन हैं। हमने उनको पण्णवणा, भगवई तथा जीवाजीवामिगम--इन तीन ग्रथो के नाम बताए तथा कहा कि इन ग्रथों में नरक और नरकवासियों के सबंध मे यथेष्ट सामग्री मिल जायगी लेकिन क्रमबद्ध विवेचन तथा विस्तृत विपय सूची के अभाव मे--इन तीनों ग्रथो का आद्योपान्त अवलोकन करना आवश्यक है। इसी तरह एक विदेशी प्राध्यापक पूना विश्वविद्यालय मे जेन दर्शन के 'लेश्या! विपय पर शोव करने के लिए आये थे | उनके सामने भी यही समस्या थी | उन्हें भी ऐसी कोई एक पुस्तक नही मिली जिसमें लेश्या पर क्रमवद्ध और विस्तृत विवेचन हो | उनको भी अनेक आगम और सिद्धांत ग्रन्थों को टटोलना पड़ा यद्यपि पण्णवण्णा तथा उत्तरज्कयण में लेश्या पर अलग अध्ययन है। जब हमने 'पुदूगल” का अध्ययन प्रारभ किया तो हमारे सामने भी यही समस्या आयी। आगम और सिद्धात ग्रन्थों से पाठो का सकलन करके इस समस्या का हमने आशिक समा- धान किया | इस प्रकार जब-जब हमने जेन दशंन के अन्यान्य विपयो का अध्ययन प्रारभ किया तब-तब हमें सभी आगम तथा अनेक सिद्धात अन्थो को सम्पूर्ण पढकर पाठ-सकलन करने पड़े। पुराने प्रकाशनों मे विषयसूची तथा शब्दसूची नही होने के कारण पूरे ग्रन्थों को [7]




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