श्री सत्यबोध | Shri Sataybodh

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Shri Sataybodh by तिलोक ऋषिजी - Tilok Rishiji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शा तिलोंक ऋषिजा मद्ाराजका जीवन चरिज्रम्‌ प्राप्तो “ घोडनदे”उन्र रत्नमिय्र ते श्रीरत्ननामा मनि।, * आ्राप्त्या यस्य सुचण्डमागेजलधमेन्थ हृता्थो5भवत्‌ आपादे नवमीदिन सितदले आप्त स दीक्षात्रदी | झ्िष्यत्व रसपायकग्रहहिमज्योत्तीमते इायने॥ १८ ॥ शिष्येरस्तसमस्त दोपनिशरय' संसेवित श्रीक्न॒नि,, प्रामंग्राममुपेत्य शाक्षकथित धर्म समादिश्वान । य थ्रुत्वा बहुलाप्यभनजनता जैन मत शाश्रतं, ससारोदधिपोतरूपिणमिम सीश्रत्य शोमायते ॥ १९ ॥ एथ बषेचतुष्य सुनिदरे स्वीथ श्रयासाम्डमि , सिक्तो धमेतरु सुगंधसुमनोमि सेीवत स्थापित । ससारीयविपाक्तमोहमदिरोन्मादेन मत्तो जन,- इछायां यस्य समेत्य सौस्यजननी आप्नोति शान्ति ध्रुमाम्‌॥ २० ॥ संप्राप्त, स घुनीश्वरोष्थ नगर प्रावड्स॒तुं यापितु, सत्राकास्मिकरो गरूणवदनों ज्योति पर चिन्तयन। आकाशश्वतिरत्नचन्द्रगणिते वर्ष सिते आवणे, प्राप्तो दिव्यदण्ा द्वितीयदिबसे पेमानिफे सत्कृत ॥२१॥ आयात स्थातिमागेमप्यविरत दच्ते वियोगो सुने शब्यानीय मन सुवी ततमसा सान्द्रं शुनीनाभपि। किन्स्वेन सुविचायय शास्रवचन शाम्यान्ति तेपा व्यथा , फाठेस्मिन्रवसपिणीति गदिते को वामरत्व गत ॥ २२ ॥ समाप्य मानपटवीं निखिलोध्वपुसा, लोफे परत्र च चिर खछ मोदते य । औपृज्यपादकमठस्य गुरोश्व तस्प, झअण्बच स्तुवद गुणगणान झुदभावन्तु ॥२३॥




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