बृहदारण्यकोपनिषद भाष्यम् | Brihadaranyakopanishad Bhashyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
895
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शिवशंकर शर्मा - Shivshankar Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)» अषपातानिका ( १३ )
खुबीक्षण व्यवादितषदार्थदीक्षणयन्त्र नूवन नूढन आग्नेयविद्या अस्तविद्याएं आदि पूर्व
में नहीं थीं। यदि थीं सी वो मध्य में विनष्ट होगई थीं यह स्वीकार करना पडेगा।
परन्तु ये सारी विद्याएं अभी विद्वानों ने प्रकाशित की हैँ । इसी प्रकार पदार्थविद्या,
मूगमविया, पशुपाक्षि-सम्बन्धी विद्या प्रभुति अनेक विद्या८ जगत् में नवीन ही
आविभूत हुई हैं। झाकपेण विद्या ययपि वेद में विध्मान थी और रापियों को भी
विदिव थी तथापि मध्य में यह समूल नष्ट दोगई पुनरापि पाश्चात्य विद्वानों ने नि
विवेद्व य् से प्रकाशित की | इस प्रकार दिन दिन आज भी आचार्य्यंगण नूतन
मूतन आविष्कार करते देखे जातें हैँ।इस हेतु सप समय में मनुष्यों वी विदा
ओर विवेक की शूद्धि दो सकती दे । और यह भी विचारों फि पूर्व युग के ही
मनुष्य विवेदी हुए आजकल के बसे नहीं हो सकते इसमें कोई हंतु भी कहना
चाहिये । यदि कट्दो कि इसमें वात घमे दी देतु है तो यह कथन अज्ञानेयों का सा
हे क्योंकि नित्य, विभु, अचेतन, एकरस, काल न्यूनाधिकता से विशेषाविशेष को
घत्पन्न नहीं कर सकता | सांख्यशास्त्र कहता है. कि काल से यन्धन वा मुक्ति नहीं
होती, क््योंक्रि काल व्यापी, नित्य और सत्रसे सम्बन्ध रखने वाला है। यदि काल-
कृत बन्धन दो ते मुक्त पुरुष को भी बन्धन द्योजाय । क्योंकि यद्वां पर भी. छाल
है । अर्थत् जो काल सत्ययुग में था बदी काल आज भी दे काल से यदि किसी
को बविन्न होता वो सामान्यरूप से सव युग वालों को होना चाहिये । यहां शह्घा
द्वोदी है कि शीत ऋतु की अपेक्षा प्रीप्म श्यतु में कुशल भी स्वस्थ भी मलुप्य उतने
क्वये सम्पादन नहीं करते | यद्द काल था ही प्रमाव है। निरुपद्रव समय में बहु-
व्यापारोदय, विद्योपदय, विविधकलामिमोद सुना जाता है, परन्तु उपद्रव-सहित
खमय में महीं | ओर भी सुनो यौवनावस्था में जसी कार्य्येक्षमठा होती बेसी खाद्धेफ
में नह्०ें। ५ अब कालरूप पुरुष की बृद्धता प्राप्त होगई । ओर यह भी अजुमान करो
कि एक देश सर्वगुशसम्पन्न हे उसको किसी समराप्रिय आंवेवेषी राजा वा दीर ने
अत्यन्त विदृलित कर बद्दा के सकल विद्वान् छुलो को नष्ट, राजकुलों को रुच्छिन्न
फरदे और धनदेतु वेश्य जादि क्ये उखाड़ डाले तव॒ उस देश शी क्या अवस्था
होगी । फोल भील भौर किशवादि आ्यों से विदुलित हो आज भी बन्य दशा से
याहर नहीं निकल सकते । यह सब काल का ही प्रभाव है । उत्तर- ऋतुओं का
उदादरण ठीक नहीं क्योंकि सब युग में ऋतुओं की समानता है जो तु पहले थे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...