प्रकरणपञ्चकम् | Prakaranapanchakam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्मबोध: ७
देहेन्द्रियमनेएुद्धिप्रकृतिभ्यो विलक्षणम् ॥
तदृवृत्तिसाक्षियं विद्यादात्मानं राजवत्सदा ४९८७
जैसे अमात्यादि प्रकृतियां से राजा भिन्न है, उसी प्रकार देह,
इन्द्रिय, मन आर बुद्धि से मिन्न, उनकी बत्तियां के साक्षो को
आत्मा जानना चाहिये ॥ १८ ॥
व्यापृतेष्विन्द्रियेष्वात्मा व्यापारीवाविवेकिनास् ॥
दृश्यतेडभेपु घावत्सु घावन्निव यथा शशी ॥९६८॥
जैसे मेघो के चलने से चन्द्रमा चलता हुआ दिखाई देता है, उसी
प्रकार अज्ञानी पुरुषों का इन्द्रियां के व्यापार में आत्मा के व्यापार
की प्रतीति होती दे ॥ १ ॥
शात्मचेतन्यमाशित्य देहेन्द्रियमने।धिय: ॥
स्वकीयाथपु वतेन्दे सूथाशिक्क यथा जना; ॥२०॥
जैसे सूर्य के प्रकाश को पाकर संसारी जीव अपने अपने फाये
में संलग्न हो जाते हैं, वेसे ही आत्मा के चेतन्य को पाकर देह,
इन्द्रिय, मन और वुद्धि अपने अपने विषय मे प्रवृत्त होते हैं ॥२५॥
देहेन्द्रियगुणान् कर्मा ण्यमले सश्चिदात्मनि ॥
भअ्रध्यस्यन्त्यविधेकेन गगने नोलतादिवतु ॥२९॥
जैसे आऊाश में नोलता का अध्यास करते हैं, वैसे हो निर्मल
सत् चित् स्वरूप आत्मा में अज्ञान से देह, इन्द्रिय के गुण ध्रार
कर्मो' का झध्यास करते हैं ॥ २१ ॥
खज्ञानान्मानसेपाधेः फतू त्वादीनि चात्मनि ॥
कल्प्यन्तेउम्थुगते घन्द्रे चचनादि यथाम्भस: ॥२२॥
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