सम्यक्त्व पराक्रम भाग - 3 | Samyaktv Prakram Bhag - 3
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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No Information available about जवाहरलालजी महाराज - Jawaharlalji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बाईसवां 'बोल-१५
करता है, परन्तु वह बार-बार बन्ध नहीं करता है ।
अतिरिक्त पाई टीका के श्रनुसार यहां यह पाठान्तर
सायावेयणिज्ज॑ च ण॑ कसम भुज्जो भुज्जो उवचिणई ।
अर्थात -अनुप्रेक्षा करने वाला बार-बार सातावेदनीय
बान्धता है ।
यह पाठान्तर भी ठीक प्रतीत होता है। क्योंकि यहां
तगुणस्थान का प्रश्त नहीं है वरन् अनुप्रेक्षा रूप आ्राभ्यन्तर
का ही प्रश्न है। अनुप्रेक्षा रूप श्रभ्यन्तर तप से शुभ
ति का बन्ध होना ही सम्भव है अतः: यह पाठान्तर भी
' प्रतोत होता है ।
इस प्रकार अनुप्रेक्षा से कर्म की अशुभ प्रकृति नष्ट
पे है और अशुभ प्रकृति नष्ट होने के बाद जो शुभ
ति शेष रहती है वह संसार के बन्धन में उस प्रकार
ने वाली नहीं होती, जिस प्रकार अशुभ प्रकृति है। उदा-
॥ के लिए-वजन को दुष्टि से लोहे की बेड़ी और सोने
बेड़ी समान ही है, पर लोहे की बेड़ी सहज में
ढी नहीं जा सकती श्रौर सोने की बेड़ी जब चाहे तभी
मी जा सकती है। लोहे की बेड़ी वाला इच्छा के अन-
( किसी भी जगह नहीं जा सकता, पर सोचे की बेडीवाला
हैं जहां जा सकता है और सम्मान प्राप्त कर सकता है।
प्रकृति और अशुभ प्रकृति में भी ऐसा ही अन्तर है.।
[ प्रकृति वाला संसार से छूटने का उपाय कर सकता है
तु अशुभ प्रकृति वाला वसा नहीं कर सकता ।
शास्त्र के कथनानुसार शुभ्न॒ प्रकृति वाला जीव इस
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