महाकवि मतिराम और मध्यकालीन हिन्दी कविता में अलंकरण वृति | Mahakvi Matiram Our Madhykalin Hindi Kavita Me Alankran-varti

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Mahakvi Matiram Our Madhykalin Hindi Kavita Me Alankran-varti by त्रिभुवन सिंह - Tribhuvan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रपम थप्पाप अरुझठ काव्य फे मूल तत्त और परिवेश काम्प शम्द स्सस्पन्त ब्यापक है बिसके मौधर साहित्य के समौ प्रकार सिमिट कर मंणाते हैं। गधों क्मम्ग से दात्पयय मुज्यद' कमिता से है, खो किसी मी साहस का मसुख संग हुमा फरती है। आपुनिक युग में मानव छीगन की समस्‍यायें इतनी बिपम हो गई है, रुनमें इृठनी विदिषदा कमा गई है वि; उनकौ भ्रमिष्पक्ति के कारण साहिस के झा गिदिध झूय दिफस्मई परने छग गये हैं। किसी मी देश के साहित्य का आरम्म प्राय” कविता से है मिख्दा है. और भाज मी झमनेष्ठ साहिस्पकूपों के होते हुए भी साह्स्वि नाम पे एम सह! कविता ध्य है सर्य श्गा छेते हैं । किसी मी देश का राह गहयों का जौव॑त इतिएस होठा है! मानषर बिघारों एवं अनुमूतियों करी निप्रि साहिस्प के भाष्यम से ही संजित रह पाती है। सादिस भर समाज एक दूसरे का शहारा छोदकर अषिक तमम तक नहीं चछ सदते। कबिता ताहिए्स का प्रमुख केग है और सामार्मिद्र मनोह्‌चियों तथा प्रमादों बरी शक अमिम्यक्ति करने की उसमें छूमदा मी है। ताप ही उसकी शुछ स्पामाविक दुर्घल्ता्ये भौ हैं, शिसके कारथ उस्तरोक्तर बदतौ हुईं मानद समस्याझों को झ्रार कप़िता प्यक्ष करते में असफम प्रमाजित हो रही है। आ्रांपुनिष्य युग में समय गफ्साहिस्प के हे हुए मी जो किया पत्र मइर्न अशुष्ण है, उसके मूछ में उठक्य आफपेक स्स्प ठया उतके स्माने भौर सम्रस्त जीवन को अमिमूत कर देने की शक्ति है। मासतीय इसम्प व्य उदय उस बुर में हुसा क्रिस समय स्पाग भौर सपस्णा को समाम में सदृत्वपूर्ण सवाल रिया छाता था| आापुनिक सुग में डिसबी कश्पना भी फडिन है। - 2 क सम्यठा-स्प्इसी शिस कमछ पर पिरास रही दे, वद इंट सौर एकड़ी से बना है, बह दे लगर छौर एशर । एप्नति छा सये सेसे-देसे सभ्य काका से का रद्दा है यैसे-देसे दाइररूपी कमछ के पुर सिस-टिसऋर क्रमशः भारों हरफ स्याप्त हुए छा रहे हैं । देषारी बर्सुपप इस बहते हुए सुर्राशूने के गारे छो रोफने में अस्मथे हो रही हे '॥९ किन्तु वह प्रादीन शम्पठा इन माएनिक उपकरणों से निांत मुठ भद्ति की शांद में बियय रही थौ। ऐसी रिपिति में द्रोकिफ छीन्‍न के आकएंक सत्वों बी अमिम्पक्ति ताराप्मीन धादिम के हाय अमर ही थी। स्थग भर तफ्स्पामन प्ीगन पर बल देनेबाते मास्तगर्प के डिड आझ्मत ही दे दिनका मारतीम रुमाश पर पघोमि+ सांस्कृतिक ठया राज्जैतिक समी दृड्टियों से एक एच्र शम्प या, दे अपनी रुचि और शंस्पर के; सनुरुप उसध्य संबास्न करते दे ! #44955:2%:4:%# 45:57: न ->-+--०००८- ५० >>+३-०८०००- 1 एबीसृष्माय ईैगोर, (रदीश्ड शादिए्व', झाठदों हगा, शजु ७ इग्पडु मात जैज, १५ १११)




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