रामकली | Ramkali

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Ramkali by शैलेश मटियानी - Shailesh Matiyani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अलगाव को अनुभव कर लिया है। वह भी यंगा मे उतरने को हुई। पहला ही कदम गंगा के जत्न में रखा था कि उसे लगा, जैसे एकाएक ही वह सम्पूर्ण रूप से उस जलराशि में थिच गई है। अत्यन्त सधे हुए कदमों से रामकली हरगुन पंडित के समीप पहुच गई और अपनी नाक को अगूठे तथा तर्जनी से दावकर उसने डुबकी लगा ली 1 बाध से संगरभ-क्षेत्र तक का फामला कम नहीं था । यहां तक बाते-आते और नहाने के लिए तैयार होने मे काफ़ी समय लग गया या और उजाला निरतर बढता गया था। पानी में अभी भी निहायत अमुर््त-सी ऊप्मा थी और रामकली डुबकी लगाकर अपने सिर को बच्चों के से कौतुक में हिलाती जलराशि में से एकाएक हो बाहूर निकली, तो उसे लगा कि डुक्की लगाकर सीधे खड़े होते ही बह सम्पूर्ण रूप में विवस्त्र हो गई है। एकाएक ही उसे हरगुत पंडित की उपस्थिति का अहसास हुआ। डुबकी लगाते में वक्ष पर त्वचा की तरह मढ गयी-सी अपनी घोती को अपने सुड़ोल स्तनों पर से उसने बडी कठिनाई से थोडा-स्षा आये की ओर खीचा और फिर दोनो हाथ क्षापस में गूष लिए ( रामकली ने अनुभव किया, लज्जा और स्त्रीत्व के इतने बडे मामालोक का साझात्कार उसने आज तक कभी नही किया। हरंगुन पढ़ित इस वक्‍त कहा है, यह देखने के लिए उसने आखखें उठाई, तो और कुछ नहीं देखा, सिर्फ इतना ही दिखा कि सामने सम्पूर्ण रूप से विदूरी सुयदेवता पूर्वी क्षितिज पर पिहासनारूठ सम्माटों की सी सुद्रा मे आासीन दिसाई दे रहे है भीर आये मिफ सूर्य के प्रतिविम्दों से भर गई है। कुछ क्षणी तक मो ही अभिमृत रहने पर चैप्टा करके रामकली ने अपने हाथों को वक्ष पर से प्रधाम करने की मुद्रा में हटाया और बाों को सूर्य देवता पर मे, ती देखा, हरगुन पंडित उसीकी बोर स्ख करके खडा है । रामकलोी को लगा, इन छुछ क्षणों में हो उसका स्व्रोत्व सम्पूर्ण रूप से उजागर हो गया है । उसको लगा, आखें मूदते ही वह अपने-आपरों हरगुन पडित की आंखों से देखने तगतों हैं। “और उसे लगता है, कि अतराधि में डुबकी लगाने के बाद बाहर तिकलते के बाद वह केंचुन उतारने के बाद की सर्दिणी की तरह चमकदार हो आई होगी। हस्युन पढित की बताई हुई बल्पदाधियों के कायाकल्प की बात अब रामकली को एकाएंक याद बाई ओर उसने हरघुन पढित की ओर देखते हुए किर गोता लगा लिया। पानी के भीतर रहते हो, उसके मन में स्चानक लाया कि अगने




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