मंजुशिमा | Manzooshima

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Manzooshima by शिवप्रसाद सिंह - Shivprasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“जब एक प्रात खा चुका था तो दूसरा क्‍यों उठाया ?” “ऊ हम अपने खातिर थोडे लेत रहती 1 तब २० *ऊ तो स्िरिया खातिर लेत रहीं । सिरिया हमारा चरवाहा था। “अच्छा भाई अब कभी नहीं मारूगा ।” मैंने कपोलों पर थपकी दी और वह मत्त मयूर की तरह मेरे चारों ओर घूम-घूम कर नाउता रहा 1 फिर भी उसे गोद में नहीं उठाया । उठाने का साहस नहीं हुआ । और वह 1953 में अपने अपराधी “बाबूजी” को छोडकर चला गया ! वह अपने साथ अपनी एक वर्षीया बहन को भी लेता गया । ताकि कोई न रहे इस अपराधी बाप के साथ जिससे वह सन बहला सके । डॉ. इकबाल नारायण की लोगों ने अपनी-अपनी दृष्टियों से देखा होगा । कुछ लोग उन्हें काइयां, कायस्थ बुद्धि का छल-छद॒म करने वाला घूर्त, हर समस्या को आगे टसका देने वाला नीतिज्ञ तथा अपने फरिकार के लाभ के लिए तरह-तरह की साजिशें करने वाला चरित्रहीन व्यक्ति मानते थे | भूतपूर्व कुलपति से में कई बार मिल चुका हूं । उन्होंने हमेशा मेरे सम्मान और प्रतिष्ठा की बरकरार रखने का प्रयत्व किया है । चाहे वह प्रोफेसरों की नियुक्ति का मामला हो, पांच-पांच सालाना बढ़ोत्तरियों की बात हो, वे हमेशा प्रयत्न करते रहे कि मेरे निकट साहित्यकारों का एक ऐसा संगठन बन सके जो उन्हें बौद्धिक समर्थन दें | बौद्धिकों के योगदात को महत्त्व देने बाले प्रशासम के लोग यह भूल जाते हैं कि जिस भ्रष्ट वातावरण की उपज प्रशासन है, उसी की ऊपज चौढिक भी है। 26 नवस्वर उच्रव1 जबे श्रवण के साथ मैं और म॑जु अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि डाक्टर झा छुट्टी पर हैं । श्रवण ने एक मित्र डाक्टर से मेरा परिचय कराते हुए कहा, “सामने है अंतर्राष्ट्रीय ल्याति के लेखक---*--- ्् मैंने कहा, “श्रवण की यह आदत हैं कि बिना वजह मेरी अधिषयोक्तिपूर्ण प्रशंसा करते हैं । मैं अपनी बीमार बेटी को लेकर आया हूँ 1 वह रात मर हतने कष्ट में थी कि एक मिनट के लिए भी उसे आंलें झपकाने का अवश्तर नहीं मिला । हा इसे सांस लेते में तकलीफ होती है । न लेट पावी है, न जैठ पाती है 1 सारा 7. परिवार कल रात भर जगा रहा क्‍योंकि दमघोंट (शफोकेंशन) सत्राटे सें इर्तकी रु चीख कान में जलती शलाका की तरह हमें बेधती डी ल्‍् मंदुशिया / उठ ;




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