सिद्ध-साहित्य | Siddh Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आधार-सामग्री
अपने सस्करण का आधार वनाया था वह अधिक से अधिक १४वीं शती की
होगी | अब वह पाडुलिपि उपलब्ध नही है ।
किन्तु चर्यापदो के पाठ निर्धारण के सम्बन्ध मे विद्वानों ने यथेष्ट कार्य
किया है। उन्होने चर्यापदों का तिब्ब॒ती रूपान्तर ढूंढा और उसके आधार पर
शास्त्री महोदय द्वारा प्रस्तुत पाठ में यथेष्ट सशोधन किये है । इस दिशा में डा०
बागची का कार्य महत्वपूर्ण है। कलकत्ता विश्वविद्यालय के जर्नल आफ डिपार्ट-
मेट आफ लेटर्स (खंड ३०) में उन्होने चर्यापदो के तिव्बती रूपातर दिये हैं ।*+
उन तिब्बती रूपातरों की सस्कृत छाया दी है, उनके आधार पर शास्त्री
महोदय द्वारा प्रस्तुत पाठ का सशोधन किया हैं और प्रत्येक पर अत्यन्त
उपयोगी टिप्पणियाँ दी है जो श्रर्थन्तिर्णय तथा पाठनिर्णय मे विशेष सहायक है ।
धागची के उपरात श्री मणीद्दध मोहन बसु ने चर्यापदो का एक सस्करण
प्रकाशित किया है जिसमे पाठान्तर देने के अतिरिक्त पदो की बँगला छाया,
मर्मार्थ तथा टिप्पणियाँ दी है, पदो की भाषा का विवेचन किया और टीकाएँ
भी दी | इस दिशा में नवीनतम प्रयास डा० सुकुमार सेन का है जिन्होंने
इडियन लिग्विस्टिक्स (खड १०) में श्रोल्ड बगाली टेक्स्ट्स”' नाम से चर्यागीति
(पद) वज्भगीति तथा कुछ प्रहेलिकाओ का सग्रह किया है। उन्होने पदो का क्रम
शास्त्री के अनुसार न रखकर प्रत्येक पदकर्ता के पदों को एक साथ सम्रहीव कर
नया क्रम निर्धारित किया है। उन्होने अग्रेजी मे इन पदो का छायानुवाद
भी दिया है किन्तु उसमे अनुमान का आधिकय है। प्रस्तुत प्रबन्ध में श्राने
डा० सेन के अ्रनुवादो पर यथास्थान टिप्पणिया दी गई है ।
शास्त्री महोदय के सस्करण में इस पद-सग्रह का नाम “चर्याचर्यवि-
निश्चय” था। पडित विधुशेखर शास्त्री ने इस नाम से अपनी असहमति प्रकट
करते हुए इसका सही नाम ओआश्चर्यचर्याचय/ अनुमानित किया था। इसका
आधार सम्भवत मुनिदत्त की टीका के प्रथम श्लोक की तृतीय पक्ति थी ' श्री
लुयीचरणादिसिद्धरचतेप्याश्चयंचर्याचये ।” डा० बागची ने जिस तिब्बती
रूपान्तर का आधार ग्रहण किया है उसमे “आ्राश्चयं-चर्या,” नाम न होकर केवल
इन चर्याओं का विशेषण मात्र प्रतीत होता हैं। तिब्वती रूपान्तर में इस पद
सम्रह का नाम 'चर्यागीति कोष' है । डा० बागची ने भी इसका यही नाम स्वीकार
किया है, १०, और सम्भवत इसी कारण डा० सुकुमार सेन ने अपने सस्करणो
में इन्हें पद न कह कर चर्यागीति कहा है ।
र्५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...