आधुनिक भारत | Aadhunik Bhaarat

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Aadhunik Bhaarat by शंकर दत्तात्रेय जावड़ेकर - Shankar Dattatraya Javdekarहरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

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शंकर दत्तात्रेय जावड़ेकर - Shankar Dattatraya Javdekar

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हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दुस्तान क्यों श्रौर कंसे जीता गया ? ?१ हिन्दुस्तान में हिन्दुग्रों श्र मुसलमानों के प्रबल राज्य श्रौर साम्राज्य थे । धनोत्पादन श्रौर युद्ध-कला में तत्कालीन यु रोपीय राजाग्रों से वे पीछे नहीं थे । अकबर या ग्रौरंगजेब के साम्राज्यों के मुकाबले में एलिजाबेथ श्रथवा एन का राज्यविस्तार श्रौर वैभव बिल्कुल नाचीज था । एलिजाबेथ के राज्य- काल से लेकर एन के द्ञासनकाल में ब्रिटिदा-व्यापारी पदिचिम में श्रमरी का से लेकर पुर्वे में हिन्दुस्तान श्रौर चीन में फल गये थे । भिन्न-भिन्न देशों में उन्होंने भ्रपने छोटे-छोटे उपनिवेश श्रौर व्यापार-कोठियां कायम कर ली थीं । इन कोठियों की हिफाजत के लिए वे कुछ दस्त्रास्त्र दौर सेनिक अ्रपने पास रखते थे श्रौर जिस समुद्र पर किसी राजा की सत्ता नहीं थी उसपर भी वे अपना प्रभत्व श्र घाक जमाने लगे थे । इसी जमाने में इन व्यापारी लोगों ने अपने देश के शासन-सुत्र अ्रमीर-उमरा श्रौर रोजाश्रों के हाथ से छीन लिये श्रौर समाज-संघटन राज्य-व्यवस्था व्यापारिक संघटन युद्ध- शास्त्र सामाजिक शास्त्र प्रौर भौतिक विद्या में कितने ही नये-नये दोध किये । इस कारण उनके मन में यह ग्रभिमान भी उत्पन्न हो गया था कि हम हिन्दुस्तान श्रौर एशिया के हिन्दू मुसलमान श्रौर बौद्धों की अ्रपेक्षा अधिक सुसंस्कृत भ्रौर सम्य हैं । जब हम यह कहते हैं कि ब्रिटिश-राष्ट्र व्यापारी-राष्ट्र है श्रौर ब्रिटिश- संस्कृति व्यापारी-संस्कृति है तो इसका क्या झ्रथ हो सकता है ? ब्रिटेन के सभी लोग व्यापारी हैं अथवा दूसरे राष्ट्रों में कोई व्यापारी ही नहीं हैं ऐसा इसका श्रथं नहीं हो सकता । बल्कि यह है कि ब्रिटेन में व्यापारी लोगों की प्रघानता है श्रौर वहां की संस्कृति पर उस वर्ग की गहरी छाप पड़ी है । परन्तु इतने से ही इस वाक्य का असली अ्रथ व्यक्त नहीं होता । ब्रिटेन के व्यापारियों को आखिर यह प्रधानता केसे मिली ? जब इसका विचार करते हैं तो यह दिखाई देता है कि वहां के व्यापारी-वर्गे ने अ्रपने राष्ट्र की शासन- सत्ता भ्रपने हाथों में ली श्रौर धर्माधिकारियों तथा शभ्रमीर-उमरा के वरगं की प्रधानता मिटा दी भ्रर्थात्‌ ये व्यापारी लोग राजकाजी श्रौर लड़वेये थे । हमारे देश के व्यापारी-वर्ग की तरह महज व्यापार करके पेट भरनेवाले निरुपद्रवी जीव नहीं थे । राजा श्रौर श्रमी र-उम रा श्रर्थात्‌ लॉ स तो हमारी रक्षा करके देश में शान्ति स्थापित करें श्रौर हम सिफं व्यापार करके पेट




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