पितर स्वरूपविज्ञानोपनिषत् भाग - 2 | Pitar Swarupavigyanopanishat Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : पितर स्वरूपविज्ञानोपनिषत् भाग - 2  - Pitar Swarupavigyanopanishat Bhag - 2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मोतीलाल शर्मा भारद्वाज - Motilal Sharma Bhardwaj

Add Infomation AboutMotilal Sharma Bhardwaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भ्राद्धविज्ञान द्वितीय खण्ड प्रमाणोपनिषत्‌ ऋचा १: पी कि ७--यो य्ज्ञों विश्वतस्तन्तुभिस्तत एकशतं देवकम्मेभिरायतः । इमे वयन्ति पितरो य आययुः प्र वयाप वयेत्यासते तते ॥-..ऋक्‌० १०१३०1१। “जो यज्ञ चारो और से (अधर्गणात्मक) तन्तुओ से फंला हुआ है, एक शत (१००) देव कम्में से (१०० आयु.-सूत्रो से) जो वितत हो रहा है, उस (वितान) यज्ञ को पितर लोग बुनते है । वे पितर प्राण्ात्मक है, एव साथ ही मे वे कहते है कि श्रागे आगे बुनते जाशो-पीछे का ठीक करते हुए ॥ हमारा शरीर एक प्रकार का आयु सृत्रात्मक बस्त्र है। शुक्र मे प्रतिष्ठित पितर प्राण ही प्राणों का ताना-बाना लगा कर इस शरीरात्मक वस्त्र का निर्म्माण करते है । फलतः इस पितर की प्राणात्मकता सिद्ध हो जाती है । ८-पाकः प्ृच्छासि मनसा5विजानन देवानासेना निहिता पदानि । वत्से बष्कंये 5 थि सप्ततन्तुन्‌ वितत्निरे कबय ओतवा उ ॥॥१॥। ऋ० १॥१६४ ९-महिम्न एषां पितरश्न नेशिरे देवा देवेष्वदधुरपि ऋतुम्‌ ॥। समविव्यचुरुत यान्यत्विषुरेषां तनूषु निविविशुः पुनः ॥॥२॥। १०-सहोभिविश्वं परिचक्रम्रजः पूर्वा धामान्यमिताभिमानाः ॥ तन्‌ षु विव्वा भुवनानि येसिरे प्रासारयन्त पुरुध प्रजा अ्रनु ॥॥३॥। ११-द्विधा सुनवो 5 सुरं स्वविदमास्थापयन्त तृतीयेन कम्मेरणा ॥॥ स्‍्वां प्रजां पितरः पिच्यं सह आवरेष्यदधुस्तन्तुमाततम्‌ ॥॥४॥। १२-तावा न क्षोदः प्रदिशः पृथिव्या: स्वस्थिभिरति दुर्गाणि बिदवा ॥। रवां प्रजां बृहदुकक्‍्थो महित्त्वा 5 वरेष्वदधादापरेषु ॥॥५॥॥ “चन्द्रमा से आने वाले 'सह प्राण की प्रतिष्ठाभूत शुक्र ही पितरप्राण की आवास भूमि है। शुक्रभुक्त यह सहोमूर्ति पितरप्राण सात पीढी तक वितत होता हुआ सापिण्ड्य भाव का कारण बनता है। उपयु क्त पाँचो मन्त्र सापिण्ड्यप्रवत्तंक इसी पितरप्राण का कम्मंविज्ञान बतला रहे है। इन मन्त्रो का सोपपत्तिक निरूपण आगे आने वाली 'सापिण्डयविज्ञानोपनिषत्‌” में होने वाला है । | १५ ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now