श्री वैराग्य भास्कर | Shree Vairagya Bhaskar

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Book Image : श्री वैराग्य भास्कर  - Shree Vairagya Bhaskar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यदाक्य भगवतोक्त तत्स्वयमेव दशेति नाम्निरिति.। खं माकाशः इबसनो वायुदवर्ता “वाहमनसोरप्युपासनावे- बम॒क्ते श्रुती तथा।हे।यो, वाच ब्रह्मेत्युपास्ते मनो बैल्लेत्यु- पासत इति विपश्चितस्तत्वेज्ञा इति ॥ ९॥ || «७ जो -छ्ोक श्रीकृष्णचंदजीनें कहाहै अब तिसकों छिखके दखाते है। अग्नि सूर्य चंद्रमा तारे प्थिवी जल आकाश वायु वां मन इत्यादिक देवता भेददश्किरके उपासना करे हूए भेद्‌ दृष्टि वाछे उपासककके पापकों न नहीं करते और किद्गान्‌ महात्मा त्तो एक मुहते सेवा क़रें हुए पुरुषके पापकों नष्ट करे हैं इति ॥ ९ 1 मम पल आशुरुूर॒बाच । रा भेद॑दश्ेयेदा देवा न हरंतीह दुष्कृतम्‌ तदा कि तत्त्वविज्ञस्य त॑स्य पाप न विद्यत बतोक्तम | कमंणव हि संस्किद्धिमास्थिता जनकादय इति | नल देवा उपासिता विक्ञस्याघं हर॑त्विति चेन्न तस्य कर्म




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