सुर्य्य सिद्धान्त | Surya Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
275
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२)
अज्ञामान्थ शार सें समाचछल्न थार,जिस समय ज्ञान एवं सभ्यता का क्षीणालोक
की यरूप आदि सहादेश में शनें: २ पाद्विक्षेप द्वारां मत नहीं हुआ था ।
उस समय भारत विद्या, याद्धि, ज्ञान और रच्यता के पूणे आलोक से जगत
को आालोकित कर जविनश्यर गीरव भहिभा में सबिशेष गीरवान्वित हुवा
था। क्या घसे, फया ज्ञान, क्या दुंशेनशरख, क्यों गणित, ,श्य८ ज्पो लिप, क्या
प्लेषज्य तत्त्व, एया फाष्य, फ्या इतिहास, क्या शिल्प, क्या थाणिज्य, क्यर
झाषा, कया साहित्य सर्वविध विपय ही 'में :ज्ञारत जगत क्ले शीषेस्यानोय
चा | को आर्यजाति अतलऊल साहस, विऋम, तेजस्थिता औौर सनस्थिता प्रं-
क्षाख से प्रमगढल में अक्षयकीर्ति लाक्ष फर गंदे है, जो आये जाति एक-
समय एयियी में सब विषयों में सर्वेश्रेठ जासि (कहकर परिगणित हुए प्यो
जो आगेजासि कान जौर सभ्यता के विमलछ आलोफ में जगत् को उदुभासित
कर लगस् फा शिक्षा गु८ यहुसस्भमाभाएँ वरणीय -पद् पर अधिरुड़ थी, जिस
आये जाति के गौरव के प्रभाव से भारतवर्ष जगत के इ तिहा8 फे शीपेरुपास
में विराजमान होरदहा है, जिस आये जाति के वंशधर कहकर दस मरपद-
दलित होफर भी अरब तफ सभ्यसमाज में ससम्स्तान से परिश्रद्दोत होते हैं.।
उसो अगदुगुरुभायेजाति फो अपूर्ये विद्या ज्योतिषशासर आज फ्ट्टूष्ट चक् फे
आपत्तेच से को त्ति विछीपकारी कराख काल फी विस्दलि कवछ में निहित है ।
इस समय अ'मेप्रतिभझा पर कुछ फहूंगा । अधिकांश सम्यजन पद में को.
संख्या लिखने फी मणारी चल रही है, भारतवर्ष-झो उस को सत्पत्ति का;
स्थान हे ॥ एफ से € संख्या एवं शन््प, एवं संख्या भादि आये थी छोगों से '
पहिले ख्ट फी थी ॥ रे
पाटीयणित की दुशगुणोक्तर संरुपा छिखने फी प्रणाली आयों को रूष्टि-
है। अरपवासीगण ने फ्रारतोय आया के निकट से यह.सौख कर परोप में
प्रधार किया | अरबयाहियों ने रूप्तः इस खिपय में अपने को आये शिष्य
कहकर स्वीकार किया है | यरेपोप छेश्य इस सत फा अनुमोदन फरते हैं
जो एनेश्नलिखित मरमाणों से सिद्ध है पे ५
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