सर्व दर्शन संग्रह | Sarva Darshan Sangrah

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Sarva Darshan Sangrah by उदयनारायण सिंह - Udaynarayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दरशनम ] सापादीकासमेतः ! (११) नीविकामात्र चनाये हैं ॥ ज्येतिशेम यम मरे हुए पश्च यदि स्वर को जायगा ते याग करने वाले अपने पिताकों यक्ञमें क्‍या नहीं मारते निप्तति पिता भी सवा! पहुँच जाय ॥ २२ ॥ मृतानामपि जन्तूनां श्राद्ध चेतृतिकारणम्‌ । गच्छता मिह जस्तूनां व्यर्थ पाथियक्ल्पनम्‌ ॥ स्वगस्थिता यदा तृत्ति गच्छेयुस्तत्र दानतः। प्रासादस्योपरिस्थानामत्र कस्मान्न दीयते ॥ यावज्ीषेत्‌ सुख जीवेहण कृत्वा घृत्त पिवित्‌। भस्मीभृतस्य देहस्थ घुनरागमन कुतः॥ यदि गच्छेत्पर लोक देहादेप विनिर्गतः । ) फरमाद भूयों न चायाति बन्घुस्नेहसमाकुछः ॥ २३ ॥ श्राद्ध करनेमें मरे हुए प्राणियाफ़ी ठाप्ति होतो है तो परदेश जानेवाले पथिय भागे भोज्य)को क्‍यों छेजाति है धरदीमें श्राद्ध करनंसे सब्र तृप्त हो जायगे ॥ यहां पर शन के स्वगेश्य पितृगण तूप्त होते हो तो कोठे पर बेठ विशाजमानके नामत्त भी पति क्‍यों नहीं दे देते हो बह तृप्त तो हो ही जायगे और नोचे उतरनेका कष्ट भी ने होगा ॥ जबतक अब तयतक सुस भोगे । ऋण लेकर भो घृत पीवे देह जलकर भरत दोनानेपर पुन' उप्तकी उत्पात्त कहते हो सकती है ॥ यदि कोई आत्मा इस देहते निकठकर छोकान्तरमें जाता शे तो वन्घुस्‍्नेहते व्याऊुठ होऋर पुत्रः क्‍यों नहींघर आता हैआतातेन्श भत देहसमित्र आत्मा नहीं है। देह ही है से। यहा नष्ट होगया ॥२३॥ ततंश्व॒ जीवनोपायों ब्राह्मणेविहितस्तविह । मृतानां प्रेवकर्य्याणि न खन्‍्यद्वियते कचित्‌ ॥ २४ ॥ अठः मंस्के लिए प्रेतकार्यादे सय बाह्मणोने अपने जीवनके उपाय बनाये हैं उसे भर्तिप्कति कुछ फल नहीं है ॥ २४ ॥ प्रयो बेदस्य कत्तंति अण्डपूतनिशाचगः । जर्फरीतुर्फरीत्यादि पण्डितान| वचः स्मृतम्‌ ॥ अश्वत्यात दि शिश्न तु पत्नीमाहं प्रकी्तितम्‌। भण्डेस्तद्वत्पर चेव माह्मजाते प्रकीसितम्‌ ॥ मांसानां खादने तदन्निशाचरप्तमी रितमिति




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