आर्य्यभटीयम | Arjya Bhatiyam
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ॥ ! १७
गोलके के कदम्ब के (१) निम्नटतर है। कुरुक्षेत्रपव में हम प्रथम दो का ही प-
रिचय देंगे। द्वितीय दो कृष्ण नीला की लशिता और श्रीराचा, तृतीय दो का
परिचय अंडू में होगा। यह देखी ! श्रीराधा का किरोट, राशिचक्र के एक चन
के (२) शिरोभाग में उच्चासन पर बठा है। बास भाग में ललिता सखी, अ-
तय सखियों में चन्द्रावनी (हस्ता) (३) राशिचक्र के दक्षिण में, चित्र लेखा
थित्रा नक्षत्र ) राशिचक्र के मच्य में | ललिता (स्वाती ) और श्रीराचा को
( विशाखा का ) (४) अवस्थिति श्थान ऊपर कहा गया है । रह इवी राशिच्रक्र
फे मच्यमें सवश्यित है। सुदेवी (:) चघम्पक लता (६) राशिघक्र के दक्षिण में
अवस्थित तड़देवी हैं तद्ू में ओर इन्द्रनेखा (9)-शाशि चक्क में त्ावस्थित हैं ।
झअयन मण्ठल के अपर घन राशि के शिरो भाग में शृष राशि में, यशोदा
देवी ( देवभातृका कृततिका ) (८) श्रीए बलादेव की साता रोहिणी देवो के
सासभाग में कलावती क्लरीसदी चल्द्रिमा दो अवश्यित का स्थान हे ६
यह देखो | कलावती आशियनी पूणिसा, अश्विनी नक्षत्र में अत्रस्यित
कर रास-दर्शन के उल्लास में द्रत वग से राशि चक्र में दोढ़ रहीहें । कि
और श्रीराजा में परस्पर रासलीला निमित्त विघार हो रहा है। कलावत्गे
अश्पिनी से भरणी, कृत्तिका, रोहणी, सगशिरा, आदि एक २ नज्ञत्न असिक्रम
फर रही हैं और क्रम से जामाता के निकटस्थ होती जाती हैं, मानो नोल
अवगुणठन मुखक्षमल आच्द्ादन करतो हैं (९) पुनवेस नक्षत्र (१९) विष्ण तारक
के दर्शन से कलाबती (१२) ने ८ कजाझं को आउच्दादित कर-लिया है (१३)
एवं क्रमशः श्रीराचा नक्षत्र में आकर जामाता,के दशन में १६ कला आ-
सकतक+-2)१००-+०क. न नमकत ७ ०० च« »++ जजिणणा।डी ऑशिनजओमनन>ल अलजलओल-ण »
क्न न्ग्म्न “ह ब>+-- जता + -“++ -+>> के ७ 34००५ ८+-००-
(2)-प्र व और अभिजित नक्तत्र के प्रायः मध्यवत्ती विन्दुरूध्र व से ३६ अंश दूर पर कदम्ब अवस्थित ढेँ।
प्र बान जिन लवान्तर इति भारकराचाकः (२)-॥॥])11 001 70. (३)-हसता के ५ नक्षत्र चन्रवत शुक्र
बह ॥ (४)-विशाखा के तीन पद तुलाराशि मे और एक पद बश्चिक राशि में ओर उत्तरस्थ तारका अयनमण्डल
के उत्तर में एवं श्रन्य तोन दक्षिण में। इसकारण दुबचन का व्यवद्वार है। रामायण लकाकाणड | विशाखा के किरीट
में $० नक्तत्र हैं। (५)-अनुराधा! का दुतीय तारा नरक लोहित वण कह कर अ्नुरध् का रह दवा नाम ह नरक
अथ स-न-सुर्य ॥ रकः स्फटिक सूथ्थ४ । इतयमर: । (६)-ज्यछा वक्राकत कहकर सुदवी नाम मृत लता वुनिक ॥
(७)-- 10 01 )09प्रा ५. (५)-तुह्स्थ कहने से पर्वाषादा नक्षत्र तह देवी ने नाम पाया ह॥ (£)-सुप्रकार
शुक ब्ण चतुष तारवामय उत्तराषाद इन्दु लखा हैं ॥
(१०)--चतुर्थ मातृमएडलम् - काशी खण्ड (११) - कुष्णपन्त का कलाक्षय (१२) - पुनवसु शब्द सं बसु क
रे प्रश | बस>८। सुतराम् ८७ का पद ६ । अर्थात् धयुनवसु नक्षत्र मे ६ तार ह। वत्तमान आय ज्योतिषशास्त्र
ड ४
| के हि ०. ३ का ते नु ५ न्
में ५ गुईत होते हैँ । किन्तु ४ तारक को साधारग रख बाकी २ तारक; में स॑ एक २ लकर दा पनुष दखग बसु
अर्थ से धनुष का ग्रहण है ॥ (१३) - कारतिकों कू णाष्ट्रमी या गापाष्टमी ॥
User Reviews
rakesh jain
at 2020-11-23 10:15:51