जायसी की बिम्ब योजना | Jayasi Ki Bimb Yojana

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Jayasi Ki Bimb Yojana by डॉ. सुधा सक्सेना - Dr. Sudha Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्ाभ्य का प्राण तत्व १७ अपने परविरिक जीवन ढी धमस्पाप्मों का समाघान लोबठा है। एस प्रदार जीवन मौमासः के दो झुय स्थीवृत हो बके हैं एक बाह्य थोजन थी भीमांसा दूसधा प्र|तरिक जीवन की मीमासा भौर रझाम्प के प्रसतियाद द प्रयोपकाद (मई कबिता) इसी को प्रमिम्पक्तियाँ हैं । इसमें एक की दुप्टि भ्रम्तमु ली है दुसरे की बहिमृती धुक के सम्मुक्त मत प्लौर बृद्धि की उसभरमें हैं तो दूसरे के सम्मुख तग भौर घत को । एक व्यक्ति के पीड़ित भरह मन ग्रोर बुद्धि क भ्न्तग्मसद्ध का गाय” है दो दूषरा सपाड के दसित, पलित इंग का उद्भारकटों। यहाँ प्रधप प्रपतिग्राद पत्प॑ु्षातु प्रयोपब्ाद के झीवस मीमांसक रुप दौर बिम्द की माम्यठा को शेखन का प्रयत्न किया जागमा । प्रमतिबाद प्राबीत कबियों प्रौर भाज्ञायों के सम्पुछ रमशीयता प्लौर रसमयठा काम्य का मापदं ४ था धौर भातनद प्राप्ति कराता उसका सर्व स्‍्वीहृत उदय वा परम्तु प्रापृनिक मु में यह पामद४ बदसा धौर प्रासोवक को लिखना पदा कि सुख्र प्रौर स्वस्थ विर्माच ही करिया का जा श्व है । भाखमताल अपूबरदी सें कहा किया को शुए्त शाम विखाण या बितोद पालने हैं किम्तु यथाच कबिता विखास मही बढ तो एक लिर्माल है महान जिर्षाण | हिमाछम की तरह स्थागी दवा दी हाह तपमागी सूर्य किरधों की तरह प्रावश्यर भ्ौर बायु कौ तरह झतिदाय । भादज की क्षिता स्वण सोह़ झजणा गस्‍पना छोडः के रगीत ईभभ में भी शिदआास मरी करती बह जौबम सिर्माय की इइछुऋ है इसीए ए भ्राज'जौदत मे हरी हुई बरदिला साहिष्प की सबसे बडी निर्भश्श्ता' मारी जातो है। भाज के शरदि के ध्रगृूषद किया कि स्॒प्यों का कक््यता सोष्त प्राज क प्राथिक मंदप बज बँपम्प में जी बही सश्ता उसकी संबइगशीस सवा ब्राज के पूल बुंबार भौर ढ्रौचइ में इम हो देती हैं। पत से सित्रा एम मुग की कविता रदप्नों में महीं पल शकती । उसकी बहों गो घपनौ पोपण सामटी अहय करते के विए कद्योए परती शा घाधव मैमा पह रहा है। प्रीर गुत-शीबस ने उपके जिर सबित सु्य इबप्जों जो डो चुगोती दी है। उसको उसे स्दीकार बरगा पड़ रहा है |? जीवन बी फ्रेम सपध्याप्ता बग बद्ि से ध्रमुमम किया । उसने जोबत छ च्सामबरप को इसत हुऐे पहुे सरापजम्थ स्वापित करने री अष्टा शी बयोकि बाह्त प्रभुग्दश्ता के ड़ मं लड़े होरर प्रास्तरिक सौन्द्रप बी उपासता सदी हो सती विश्स्श घोर निर्सन जनता मे बीच रहे होइर धाप परियों के सोन्दप खाद को कव्यता सही कर सरल । फसत गंबिता जीवन को सवागक उसतों सुस्दर बताते जी इच्छह हां एमी । जद है. सारिजोडल--ना सनकाज बतुऐ्द् १० 83३) है झा-ुनित कह मात ३ प्रौश हा दानहुमत बों क्३1 है सूपृस-ह़त । डे. अप वे भूज-- दि ), कर २ ८३ ।




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