कबीर के धार्मिक विश्वास | Kabir Ke Dharmik Vishvas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। मक्त-परम्परा के भाधार पर उनका रोडा वमशते यालि विजली मा कबीर-पंप की छत्तीसगढ़ को काखा के प्रवस के धमदास हथा उसकी पंथन्‍सरम्परा को काणी में इसाने वाझे सुरतगापाक्त का शाम उनकी धह्िप्य-परम्परा मैं सादर लिया जाता है।यह गोर बात है कि जिस मूत्ति-पूजा भोर बाह्याइम्दरा का जिरास करत २ उस्होंगे जोडन विता दिया, उनक पिप्या द्वारा प्रचस्तित पर्षों की धास्राप्रों ये उन्हीं बी मूत्ति की पूरा होत लगो प्रौर पब धरात्ारों का रूप भी निर्धारित कर रिया । विपष के समी पर्मों क उम्तायशों बे डिपय में यह सत्म प्रतीत हांता है कि फ्यों २ किसो धम की जोबद शक्ति क्षात्र होतो जाती है त्या+ बहू भी धावार प्रधाम हा कर समुदाय के सत में स्पापढ़ ता हो जाता है, परन्तु प्रान्तरिक दुष्टि छ प्रमाव पौर महत्व हीत मी होठा जाता है । कबीर सही, उसके भ्रमुयापियों द्वारा प्रदर्तित कबी र-पथ भी इसका श्रपबाद गहीं । सत्य के प्रति प्राग्रह भोर प्रसत्य पर ग्रापात मकद से प्रास्मीयहा ध्रौर मायाबी से श्रशगाव, कयनी में झव्ति धौर बरमा में दिएवास, निमृत्तिपरक होते हुए भी प्रवत्ति-ररक जीवन, सठ होठे हुए भी प्र गुहस्या संपपमय जात बिताते हुये भी, स्वष्रः सरत उपदश देने दाछ्ठे हाकर भा स्वठ प्राइशणपीस सामाम्य द्वोडर भी प्रसामास्य एवं प्रदितीय स्वमाव, दृतित्द एवं ब्यक्तित्त रखने बाल़े युग-नद्रप्टा क्दोर मुंग-मायक मो थ। उनके इस व्यक्तित्व का महान्‌ बताते बाझे घामिक दिस्वार्सो का ही प्रप्यमन प्रयक्े पुष्ठों मैं किया मग्ग है। अ++-+-++->«>>+_




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