नीतिपथ | Nitipath

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Nitipath by जयनारायण - Jai Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १४ । कारय जाती रहो .। इन सब कारणों से सोसदत्त, कहे दुःख में पड़ा महाशनों ने पद्चिलेही उस के घर भादि को बेचवा शिया था उस से भी जब कण न अदा हुआा तब मसदहाजनों ने नालिश को वह्ु उस समय क्या कर सकता था | मझाजनों ने संदर्ह्ध किया कि इसके पास अभी धन है इसलिये उसको कद कराना चाहा। इस के बाढ़ एक दिनसोमदत्त को अदालत में हाजिर किया । वहां कण निश्चय होन पर सचहाजनों की इच्छानुसार प्यादे जब उस को जेलखा ने में ले जाने को मुस्तेद हुये । ठोक उसी समय एक युवा पुरुष दौढ़ा इुआ। आया ओर उसने एक तोड़ा रुपथा हइाकिम के सामने इ्छ कर कददा कि यह्षल रुपया मकह्ाजनों का देकर आप शीघ सोमद'्त को छोड़ दीजिये । हाकिस ने कुछ जबाब न दिया थोदी देर चुप होकर सो- चने लगा कि यद कोन आदमी है ओर कहूँ से आया है *? सोमदत्त के छोड़ाने के लिय्रे कौन इतना रुपया दे सकता है ? इस मात के न जानने से एक बार सब अच॑ंसें में अप गये। सोमदत्त छन भर उस युवा के मुख को टेख.कर जोर से वोजल्ा “ बेटा व्यारासी”? बच्द भो अपने पिता.के गले में हाथ देकर रोने क्वगा सब सब लोगों पर बात साफ खुल गई कुछ काल तक दोनों ने विलाप किया तव- सब उन्‍ह घर ले गये । शाइट में व्यागम अपने पिता से सब बुतान्त कहने लगा कि मेरे पड़ोमी का एक सम्बन्धी लख- नऊ में रडता था में उस के पास गया उस दयावन्त ने थोड़ दिनों तक अपने पाम मुझे गकणा फिर वह बड़े परि- असम से अद्ाणत में एक छोटो नोकरी म॒ुक्रेदिलवा दी | में




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