हिन्दी नाट्य विमर्श प्रदीप | Hindi Nataye Vimarsh Pradeep

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Hindi Nataye Vimarsh Pradeep  by जयनारायण - Jai Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४३ सेद रहित । सास्य समानता । सब. सीरम न ताज़ा सुगन्धी | समचित - युक्त । नंतिकतता न नीतिज्ञता । प्रमाण न सबूत | १४२ प्र० प्रस्फुटित न फूटी हुई« खिली हुई । पार्थिव न प्र्वी का | छोर « फिनारा । सोपान + सीढी । उप्णता > गर्मी । संयम ८ इन्द्रियों को यश से रखना | १४३ प्र० दीक्ता न रुसमन्त्र । स्थायित्व स्थिरता । कूल न नदी । आतप + भ्रूप । दुहिता « पुत्री । प्रतिस्पन्दित न कतर मनाया हुआ | १४४ ऐप० महिपी न पटरानी | १४४ प्र० घिदग्धता-पूण > चतुरता से भरा । प्रस्थान न कूच 1 सीवार न वन्य धान । प्ण-कुटी « भौपड़ी । १४६ प्र० रोही न गृद्दस्थी ।,शापजन्य शाप से उत्पन्न । १४७ प्र८ उपालम्भ उलाहना । मो मोहने बाला | आसन्न प्रसवा न जिसका प्रसव ( व्याना ) निकट है। अभि व्यक्ति ० प्रकटता 1 ५ दृ० चतीसी वत्तीसों दात । कनिया + गोद । सुबनन पुत्रों । झसिज्ञान > पहचान । दम्पती न स्त्री पुरुष का जोड़ा ४६१ प्र० चील लोहिंत न शिव जी । १६४ प्र८ उत्तर राम चरिते भव भूतिरविशिष्यते « उत्तर राम चरित नाटक मे भवभूति कवि विशिष्र है। रश्मियों > किरणें। तमोी-मय « झन्घकार वाले । शशि - चांद । निर्वासित -. निकाली हुई । आसन्न प्रसवा * बच्चा उत्पन्न करने केलिकट । ६४ पूृ० सद्दनिताओं > अच्छी खियों । अरतु * खेर; हीवे । ग्रजावत्सलता > प्रजा प्रेंम । तारंतम्य > क्रम; सिलसिला । प्रमाद गफलत । तल्ननितःउस से पेदा हुआ । प्रचुरन्वहुत । बसन्चाहे | १६६ प्र० पावन न पतित्र | झजोग “ अयोग्य । १६४ प्र० प्रजानुरंजन न प्रजा को प्रसन्न करना | वेदना ८ पीड़ा | उट्टे ग < घचराहट । झाये पत्र ० पत्ति 1




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