आहारशास्त्र | Aaharshastra

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Aaharshastra  by जयनारायण - Jai Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जो बीमार हे, जिन्हें बौद्धिक या बेठा काम करना पडता है वे अगर इस नियम का पालन करते हे, तो उन्हे लाभ होता नजर आता हें । रोटी या अन्य ठोस पदार्थ के साथ तरल पदार्थ खाया जाय तो ठोस पदार्थ की पिसाई का उतना ध्यान रखना असम्भव हो जाता है, जिससे भागे पाचन पर अत्यधिक बोझ पडता है । यहां उस राजा कौ कहानी याद आती ह, जो शिकार खेलते हए जगल मे भटक गया था। अंधेरे में किसी झोपडी का सहारा लिए हुए था, भूख से पीडित उस राजा को झोपडी मे सूखी रोटी के सिवा कुछ नहीं मिला । भारी भूख में राजा ने सूखी रोटी ही चवाना शुरू किया और खाने का आनन्द जिन्दगी में पहली वार अनुभव करने लगा । उसे विश्वास ही नहीं होता था कि सूखी रोटी भी इतनी मीठी हो सकती ह । महलो मे मिष्ठान्न से अधिक स्वाद उसे इस रोटी मे आया । क्या कारण रहा होगा इसका वैज्ञानिकों ने इसका कारण ढूंढ निकाला हूं। लाला रस में ' टायलीन ` नामक पाचक-द्रव्य रहता हं। रीटी चबाते रमय यह्‌ पाचन-दरव्य रोटी के सूक्ष्म कणोमे प्रवेश करता हं इससे रोटी के कण शकं रा मे बदलने लगते हे, यह्‌ एक रासायनिक क्रिया है, लेकिन यह मिठास सूखी रोटी खाने से ही अनुभव में आ सकती है, दूध-रोटी दाल-रोटी से नहीं। रोटी का चर्वण पूर्ण होने के बाद ही साग-सब्जी या दाल आदि का खाना शास्त्रीय कहा जायगा । दुर्बल पाचन, कमजोर तया बीमारों को इसका आचरण गुणकारी ह्‌ । ठोस पिमो तरल खाओ १९१




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