जैन सिद्धान्त दीपिका | Jain Sidhant Deepika

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Jain Sidhant Deepika by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[मर | तत््व और आचारके विषयोका निरूपण हूँ। ग्रन्थका कलेवर नौ परिच्छेदोमे बंदा हुआ है। उसमें द्रव्य, तत््व और आचारको बडे कौशलसे स्पैज किया गया हे । यद्यपि भाचार पर प्रकाश डालनेवाले और तकंकी कसौटी पर कसे हुए प्राचीन ग्रन्थ हमें उपलब्ध होते हे, फिर भी सिद्धान्त-विश्वुत दया-दानकी यूक्तिपूर्वंक सूक्ष्म विवेचना ज॑सी प्रस्तुत ग्रन्थमे हुई हूँ, वेसी अन्य किसी दार्श- निक ग्रन्थमें नही हुई । यदि हम तटस्थ वृत्तिसे देखे तो हमे इसे दर्शन-शास्त्र का विकास कहना होगा । तत्त्व-परिकर रूपमे सुख दु ख आदिकी भी परि- भाषाएं श्राचार्योन्ते लिखी परन्तु इनका स्पष्ट निवेश अन्यत्र नही हुआ । इसकी भाषा सरल है, पाठ भी थोडा है । ऐसा होना ही चाहिए, क्यो कि इसकी रचना जनसाधारणकी उपयोगिताको ध्यानमे रख कर हुई है । थोदेमे इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यह पण्डितोके लिए जितनी मूल्यवान्‌ हैं नव विद्याथियोके लिए उतनी ही उपयोगी हुं । ज्येष्ठ कृष्णा ३ “सुनि नथमल स० २००२,




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