सिद्धान्त शिरोमणि | The Siddhant-siromani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
595
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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का आरंम होता था | यह उत्तर और दक्षिणगति का समय गाया
और श्रावण मास में होता था । उत्तरायण और दक्षियायन में दिन
की बढ़ती और घटती एफ प्रस्थ जल के वरांबर होती थी। उक्त दोनों
अयमों में दिन-रात्रि के मान में ६ मुहृर्त का भेद पड़ता था। पनिष्ठा
के आदि में वत्सरारंभ माना ,जाता था इत्यादि। इसके पूर्वफाल में कमी
वासंत-विषुवदिन से कभी सूर्य के उत्तरायण के थेत्र से षर्षरंभ गिना
जाता था । पहले चान्द्रमास पूर्ण, से गिना जाता था परंतु वेदाज्न-
ज्योतिष के समय से वह झमावास्या से -माना जाने लगा । तैत्तिरीय-
संहिता के समय में वषारंभ माघी पूर्णा से होता था परंतु बेदाड़ु-
ज्योत्िप में मांधी अमासे | इन बातों से स्पष्ट है कि संह्तिताफाल में
झैसी गणनाअणाली प्रचलित थी, वह वेदाह्ई ज्योतिष के समय
परिवर्तित होगई। झनंतर वराहमिहिर के समय ( शक की पॉँचवीं
शताब्दी ) में पुनः परिवर्तन हा और उसी संस्कृत-रुप में अत्र पश्चाद्न-
या खरूप शिक्ती प्रकार स्थित होरहा है। अस्तु । बास््तत्र में बेदाइ-
. ज्योतिष को रचना ज्योतिषशिद्दा देने फे अमिप्राय से नही हुई । किंसु
वैदिक क्रियाओं के संपादनार्थ भात्र है, ६. उसी फे प्रयोजनीय बातों का
स्थूल् निरूपण किया है । हमारे प्राचीन आर्यो के ज्योतिष-ज्ञान फी'
चरम सीमा इतने में दी समकना अ्रममात्र हैं। आचार्य बराह्ममिहिर
तल ी-वनन तल ल...००००........0.
* फई विदेशी विद्वालों ने ' बरेदाप्न्योतिष ! को देखफर यह समझा है
के प्राचीन झआायों को इसके स़िया और उ्योतिद का शान नहीं था परन्त वेदाद-,
ज्योतिष का उद्देश्य क्या दे-मेबसमूलर के शब्दो में सुनिप--., ,
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