धनुर्वेदसंहिता | Dhanurvedsanhita

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Dhanurvedsanhita by हरदयालु सिंह - Hardayalu Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषादीकापमेता । (२१ ) काकहंसशशादानां मत्स्यादक्रोंचके- किनाम। गृप्राणां कुराणां च पक्षा एते सुशोभनाः ॥ ६० ॥ अथे-कव्वे, इस, शशादः बगुले; क्रोंचपक्षी, मोर; गीष, टटीहरी, इनके पर बाणके बांधने ओष्ठ है ॥ ६० ॥ पडंगुलप्रमाणेन पक्षच्छेद च कारयेतू । दशाशलमिताः पक्षाः शाईचापस्थ- मार्गणे ॥ ६१ ॥ योज्या ददाश्रतुःसंख्याः सन्नद्धाः लायुतन्तुमिः। अर्थ-छःभंगुल्के मान परोंकी कांटे) और शाहइपलुप- पर चढ़ानेके वाणकेढिये दर २अंगुलके पर चार २ प्रत्येक बाणके खड़े तांतके तारोति बाषि॥ ३१॥ जैसेः- . ,शरथ्र त्रिविधो ज्ेयः स्रीपुर्मोश्व नपुं: : सुक॥६२॥अग्रस्थलो मनेन्नारी पश्चात्स्थूलो भवेत्युमाद्‌॥ समो नपुसको गैयरतहश्यार्त प्रशस्यंते॥ ढरपातों युवत्या च पुरुषों भेदयेहद्म्‌ ॥ ६३ ॥ ' अथे-तीन प्रकारंके बाण जानने चाहिये द्वी पुरुष और नए- सक नो आगेसे भारी हो वह स्ली बाण कहातादे। जोर पीछे जो




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