पूर्ण पराग | Purna Parag

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Purna Parag by हरदयालु सिंह - Hardayalu Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) था। सभामएडप खचाखच भरा हुआ थ¶। जब परिडित ज्वालाप्रसादजी के न आ सकने का समाचार राय साहब के मिला तब पहले उन्हें भी चिन्ता हुई, परन्तु श्रोताओं के निराश न करने के विचार से उन्होंने इस बात के किसी पर प्रकट न कियां और बड़े उत्साह के साथ स्वयं व्याख्यान दिया । उस दिन राय साहब बराबर तीन घण्टे तक बोलते रहे । व्याख्यान ऐसा ललित था कि जनता मन्त्र-मुग्ध हाकर सुनती रही। किसी ने कार्यक्रम की ओर ध्यान ही न दिया, न किसी ने विद्यावारिधिजी के आगमन को चिन्ता ही की। समय अधिक हो जाने के कारण उस दिन की वह सभा राय साहब के व्याख्यान के बाद विसजित कर दी गई। जब दूसरे दिन विद्यावारिधि परिडत ज्वालाप्रसाद जी पधारे तब जाकर इस बात का वास्तविक पता चलां राय साहब का जीव्रन सनातनधममय था। कानपुर के वेकुरठः नामक स्थान में आप रहते थे। बेकुएठ से लगभग सौ डग के आगे से ट्रामगाड़ी सरसइयाधाट तक जाया करती थी, परन्तु राय साहब वकील होते हुए भी अपने अमूल्य समय की ओर अधिक ध्यान न देकर एक रामनामी दुपट्टा ओढ़कर और गङ्गाजली हाथ में लेकर पैदल ही नित्य प्रति सवेर्‌ गङ्गा-स्नान के लिए जाया करते थे। यहं उनका नियम था | है सनातनधर्म के प्रबल समर्थक होने के कारण राय साहब आस्ये- समाज के काय्यकलाप की बहुधा आलोचना किया करते थे। कभी-कभी तो यह आलोचना बड़ी तीत्र हुआ करती थी। आप्य-




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