दत्तात्रेयवृत्तान्त | Dattatreya Vrittant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषाटीकासहिता । . (७४
ज्ञान भी हमार वही है भौर में ही व्यापकरूप आत्मा हैं और निराकार मी:
७5
हूँ अणु, हल, मध्यम भर दाध भादि जाकारोंसे रहित हैँ जौर सवमावे
६
ही में सर्वब्यापी भी हैं ॥ ५ ॥ ह
यो वे सवीत्मको देवी निष्केलो गगनोपमः ।
स्वभावनिमेरः शुद्ध: स॒ पाई ने सशयः ॥4॥
| पदच्छेद
यः, वे, सर्वात्मिकः देवः, विष्कः, गगनोप़मः ।
स्वशावनिर्भलः, शुरू), सेः, एप, अहम, न, संशयः ॥
पदाथ! ।
यःत्जें समाव-( - समावते ही निछ है।
संवात्तिक + सर्वर निमहा।
देव) ८ देव है शुद्ध! ८ शुद्ध ६
वे + निश्चय सएवं नसोई निश्चयकरके
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दत्तात्रेयजी कहतेहं-णो सर्वर्य प्रकाशमान देव है सो निर्रयत है और
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गगन जो आकाश है उसको उपमावाला भी है अथीत् जैसे जाकाश किसी
प्रकाप्ते भी चढायमान नहीं होता चैसे बह देवमी अथोत् प्रवोीशलरू5
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ब्रह्म भी यठायमान नहीं होताहै और सखवभावते ही वह निर्मल है स्व: ञः
1 है धोई निर्मल शुद्न वेतन अब में हूँ इसमें किसी प्र भी
शुद्ध मी है सोई वि शुद्न चेतन अहम में हूं इतने किसी प्रकारा
संदेह नहीं है ॥ ६ ॥ दीन
करू ३ कमेगह 4 ;
अदमवाव्यया[नन्तः शुद्दविज्ञा्ननिप्रह |
हे
मुख दुःख न जानामि के कस्यापि वतेते ॥७
ग़गने।-( :+ भाकाशकी तरह डील
पके) है
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