सात गीत - वर्ष | Sat Geet - Varsh

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Sat Geet - Varsh by धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हम रु क्यो के कोई भो निर्णय हम गुट क्यो भोग फोट भी हण्ड २ झरि में थे सर स्वार्थी फिलासी थे, कायर थे सिनके महतो में में बनती थी मुक्त स्या मुझको प्रमा थु ये 7३- उ्सो कहा “आप कहा सुम हो ज्योति गानाझएए तुम्ही जीवन हो माथे से अपने शगा पर प्रमश्यु ने फेक टिया फिर मुझको दा कायरां के वीच मुचसे ये सुत्ह झाम चूल्टा सुल्गायेंगे शय्या गरमायगे सोया गलायेगे और ज़रा सा मौया पाते ही अपने पड़ोमी का सारा घर फफेंगे | मुझको क्यो मुक्त क्रिया मुत्रफों क्यो माथे से ढगा फर फिर फेंक लिया टन कायरों के बीच ! र्रे




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