महात्मा गांधी के निजी पत्र | Mahatma Gandhi Ke Niji Patr

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mahatma Gandhi Ke Niji Patr by लक्ष्मीधर वाजपेयी - Laxmidhar Vaajpeyi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ राजलक्ष्मी वर्मा - Dr. Rajlakshmi Varma

Add Infomation AboutDr. Rajlakshmi Varma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
७9+०- प् ++- १०८ ठुम्हारा पत्र पढ़ ऋर सुझे अत्यन्त आनन्द छुआ में जानता हू कि भारतवर्प के अधिकांश लोगों को इल लड़ा का रहरुय मालम नहीं। इछसे यही रुपप्ट होता हमारे पृवजी के आत्म-बल् का जान इस समय दव गया है ! कर | कु न्‍् श् 21» ्े समय अवश्य लगेगा तु ज्यों ज्यों जाव होता जायगा, त्यों त्यों आत्म-बल दइलीदी पर उत्तरता जायगा। में जिस आत्म-बल के विपय में लिख रहा हैँ, उसका शन्वर्भांव मन्द्रि इत्यादि में जाने के बाह्य उपचार में विलनकुल नहीं होता । कृम्नी कृम्ती ये उपच्चार आत्य-वल के विरोधी भी होते ह। यदि इंडियन ओपीनियन ? को ध्यान- पूर्यक पढ़ा होगा, तो यह बात समझा में आ जायगी। छु *: “' विशेष समझा सकगे। वहां बेठे बेठे भी तुम इस बल का प्रयोग ऋर खसकोगे। सत्य और श्रभव को दृढ़ ऋरनता हो इसका पहला पाटठ हैं । ' | . . सो ** “ का आशीर्वाद | ( २१ ) हे ओहान्सबर्ग, १० +- ४ +-१६०७ ' चि० मणिलाल, हे. का सुलह होने की अब वहुत द्वी कम सम्भावना है




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now