सदाचार और नीति पहला प्रकरण | Sadachar Aur Niti Pehla Prakaran

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Sadachar Aur Niti Pehla Prakaran  by लक्ष्मीधर वाजपेयी - Laxmidhar Vaajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आवश्यकता और महत्व ९७. प्रसिद्ध श्रेंगरेज्ञ तत्ववेत्ता छा वेकन साहव का मत है कि काई भी विद्या अथवा कला हे, उसका उपयेग मानव जाति के सुख और कल्याण फी दुद्धि करने में हे! सकता है। तभी उस विद्या अथवा कला का कुछ मूल्य है, अन्यथा उससे कोई लाभ नहीं । स्पष्ट ही है, डब्दे में बन्द कर रखी हुई कस्तूरी चाहे जितनी सुगन्धित हो, परन्तु जब तक वह डब्वा खुल कर उस कस्तूरी का परिमल लोगों के न प्राप्त हो, तब तक उसका होना न होना यरावर है। मतलव यह है कि बुद्धि क्र विकांस के साथ ही साथ अ्न्तःकरण का विकास जब तक न होगा, तय तक उस युद्धि से कोई लाभ न होगा। ' नीतिमान्‌ पुमप का गोर श्रौर उसकी प्रतिष्ठा बहुत बड़ी . होती है। भ्रष्ट नीतिमता का प्रभाव ही संसार पर बहुत ही विचित्र पड़ता है। जिस प्रकार छोह-चुम्बकमणि लोहे को अपनी और खींच लेता है, उसी प्रकार नीतिमान्‌ पुरुष दूसरे का हृदय श्रपनी ओर खींच लेता है । ऐसे लोगों में एक प्रकार की आकर्षणशक्ति होती हे, ।जससे दूसरे छोगों का हृदय उनमें तल्लीन होकर उनके पीछे-पीछे दौड़ने छगता है। नीतिमत्ता में ऐसी कुछ शक्ति होती है कि जो भरृष्य उसे धारण करता है, उसके हाथ से बहुत वड़े वड़े कार्यं होते है । अधिक क्यों ? यह फहना चाहिये कि नीतिश्रेष्ट मनुष्यों के अति. रिक्त बड़े-बड़े कार्य और किसी से हो ही नहीं सकते। छुत्नपतिं शिवाजी, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी दयानन्द, ` जाजं वाशिगटन, एव्राहम लिकन, इत्यादि महापुरुषों के जीवनचरितर र ¦ पहने से हमारे कथन की सत्यता भरी मति भरतीत हो ' जायगी। +




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