हिन्दी - काव्य की कोकिलाएँ | Hindi Kavya Ki Kokilaen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भोरों ] न्ोगी होय ज़ुगति नहिं जानी, उलट जनम फिर आसों गरशा अरञ्ष करों भ्रवला फर जोरे, स्पाम तुम्हारी दासी॥ भीरोँ के प्रभु गिर्वर नागर, काटो जम फो फाँसीताशा (२ ) जग में जीवणा थोड़ा, राम कुण करे जंजार॥ मात्त पिता तो जन्म दियो है, करम दियो करतार॥। - करें खाइयो कटे खरचियों, कइरे कियो उपकार ॥ दिया लिया तेरे संग चलेगा, और नहीं तेरी लार ॥ मीराँ के भ्रभु॒गिरधर नागर, भज उतरो भवपार ॥ (६ ३) स्वामी सब संसार के हो साँचे श्रीभमगवान ) स्थाधर जंगम पावक पाणी, धरती बीच समान । सब में महिमा तेरी देखी, कुदरत के कुरबान॥ सुदामा के दारिद्र खोये, बारे की पहिचान। दो सुद्दी तंदुल की चायी, दीन्हा द्वव्य महान || भारत में अर्जुन के आगे, आप भये रथवान। रे डनने अपने कुल को देखा, छूट गये तौर कमान ॥ न कोई सारे न कोई मरता, तेरा यह अज्ञान। चेतन जीव त्तो अजर अमर है, यह ग्ोता को ज्ञान ॥ झुझू पर तो प्रभु किरपा कीजै, बनदी अपनी जान । मीरा गिरघर सरण विद्वारी, लगे चरण में ध्यान है * ड «




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