हिन्दी - काव्य की कोकिलाएँ | Hindi Kavya Ki Kokilaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भोरों ]
न्ोगी होय ज़ुगति नहिं जानी, उलट जनम फिर आसों गरशा
अरञ्ष करों भ्रवला फर जोरे, स्पाम तुम्हारी दासी॥
भीरोँ के प्रभु गिर्वर नागर, काटो जम फो फाँसीताशा
(२ )
जग में जीवणा थोड़ा, राम कुण करे जंजार॥
मात्त पिता तो जन्म दियो है, करम दियो करतार॥। -
करें खाइयो कटे खरचियों, कइरे कियो उपकार ॥
दिया लिया तेरे संग चलेगा, और नहीं तेरी लार ॥
मीराँ के भ्रभु॒गिरधर नागर, भज उतरो भवपार ॥
(६ ३)
स्वामी सब संसार के हो साँचे श्रीभमगवान )
स्थाधर जंगम पावक पाणी, धरती बीच समान ।
सब में महिमा तेरी देखी, कुदरत के कुरबान॥
सुदामा के दारिद्र खोये, बारे की पहिचान।
दो सुद्दी तंदुल की चायी, दीन्हा द्वव्य महान ||
भारत में अर्जुन के आगे, आप भये रथवान। रे
डनने अपने कुल को देखा, छूट गये तौर कमान ॥
न कोई सारे न कोई मरता, तेरा यह अज्ञान।
चेतन जीव त्तो अजर अमर है, यह ग्ोता को ज्ञान ॥
झुझू पर तो प्रभु किरपा कीजै, बनदी अपनी जान ।
मीरा गिरघर सरण विद्वारी, लगे चरण में ध्यान है
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