चौथा कर्मग्रन्थ | Choutha Karmagranth

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Choutha Karmagranth by पण्डित सुखलालजी - Pandit Sukhlalji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन । इस्र पुस्तकका लेखक में हूँ, इसडिये इसके सम्बन्धर्म दो-चार आवश्यक बातें मुझको कह् दनी हैं । क़राब पाँच साल हुए यह्‌ पुस्तक लिखकर छापनेकों दे दी गई, पर कारणवश बह न छप सकी । में भी पूनासे छौटकर आगरा आया ।। पुस्तक न छपी देखकर और लेखनविषयक मेरी अभिरुचि कुछ बढ़ जानेके कारण मैंने अपने मित्र और मण्डलके मन्त्री बाबू डाल्चंदजीसे अपना विचार प्रकट किया कि जो यहद्द पुस्तक लिखी गई है, उसमें परिवततेन करने- का भरा विचार है। उक्त बाबूजीन अपनी उदार प्रकृतिके अनुसार यहा उत्तर दिया कि समय व ख्रच-की परवा नहीं, अपनी इच्छाक अनुसार पुस्तकको निःसंकाच भावसे तैयार कीजिये | इस उत्तरखे उत्सादित द्योकर मेंने थोड़ेसे परिवतेनके स्थानमें पुस्तकको बिलकुछ दुबारा ईी लिख डाला । पहले नाटें नहीं थीं, पर दुबारा लेखनमें कुछ नाटें लिखनेके उपरान्त भावाथका क्रम भी बदल दिया | एक त्तरफ छपाइका ठीक सुभीता न हुआ और दूसरी तरफ नवीन वाचन तथा मनन-का अधिकाधिक अवसर मिला | छ्खन कायमें मेरा ओर मण्डछका सम्बन्ध व्यापारिक तो था दी नहीं, इसलिय विचारने ओर लिखनेमें में स्वस्थ ही था ओर अब भी हूँ। इतनेमें मेरे मित्र रम- णलाल आगरा खाये ओर सहायक हुए। उनके अवलोकन ओर अनु- भवका भी मुझ सविशेष खट्टारा मिला । चित्रकार चित्र तेयार कर उसके प्राहकको जबतक नहीं देता, तबतक उससें कुछ-न-कुछ नयापन लानकी चेष्टा करता ही रहता है | भरी भी वद्दी दशा हुई ।




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