श्रीमद्भागवद्गीता | Shreemadbhagwadgeetan
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
828
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीमद्धगवद्गीता धर भूमिका
४) पर डिये जा रहे है, लीग ३) पर देने को तैयार हो ज्ञागगी | पर जितनी
थ्रोढ़ी धन की सहायता सज्ननो से प्राप्त हुई, उसी के थ्रनुसार लीग को विपण
होकर साधारण-रूप से इस व्यास्या को प्रक्राशित ऊरना पड़ा और अपनी इन्दा
के विरुद्ध २) अ्रति भाग दाम रखना पड़ा । डेश्चर फरे गीता प्रेमियों के हृदय
इस ओर अधिक प्रेरित हो, आर ये क्वीग को सहायता देने मे समर्थ हो, जिससे
ज्षीग अपने उच्च उद्देश्य के पालन मे सफल हो !
इस अवशिष्ट भाग की प्रस्तावना प्रथम पटक की प्रस्तावना फो रीति से नही
लिखी गई । प्रथम भाग की प्रस्तायना में तो फेवल कर्म-
अकर्म, घर्म-धधर्म तथा यज्ञ-अ्यज्ञ इन््यादि फ्ल्िष्ट शब्दों पर
विस्तारपूर्वक विचार फिय्रा गया था, श्रौर उन शब्दों के जो-जों झर्थ वा भाव
गीता के प्रन्दर अम्पष्ट रूप से वर्णित थे, उन्हें स्पष्ट रूप से दर्शाया गया था ।
पर हस दूसरे भार की सस्तायना में केवल शब्दों का नही फ्ितु मांगा व सिद्वातो
का विवेचन क्रिया गया है, और यह भी स्पष्ट रीति से दर्शाया गया है कि गीता
के उद्देग्य ओर उपदेश कहाँ तक अन्य शास्रो से मिलते-जुलते है और कहाँ तक
नितानत विपरीन है। और मुक्ति के झ्नेक प्रचल्तित मार्गों से गीता मे बशित
मार्गों का क्हों नक भेद्र है ।
प्रस्तावना-ध्यय
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