श्रीमद्भागवद्गीता | Shreemadbhagwadgeetan

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Shreemadbhagwadgeetan by नारायण स्वामी - Narayan Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीमद्धगवद्गीता धर भूमिका ४) पर डिये जा रहे है, लीग ३) पर देने को तैयार हो ज्ञागगी | पर जितनी थ्रोढ़ी धन की सहायता सज्ननो से प्राप्त हुई, उसी के थ्रनुसार लीग को विपण होकर साधारण-रूप से इस व्यास्या को प्रक्राशित ऊरना पड़ा और अपनी इन्दा के विरुद्ध २) अ्रति भाग दाम रखना पड़ा । डेश्चर फरे गीता प्रेमियों के हृदय इस ओर अधिक प्रेरित हो, आर ये क्वीग को सहायता देने मे समर्थ हो, जिससे ज्षीग अपने उच्च उद्देश्य के पालन मे सफल हो ! इस अवशिष्ट भाग की प्रस्तावना प्रथम पटक की प्रस्तावना फो रीति से नही लिखी गई । प्रथम भाग की प्रस्तायना में तो फेवल कर्म- अकर्म, घर्म-धधर्म तथा यज्ञ-अ्यज्ञ इन्‍्यादि फ्ल्िष्ट शब्दों पर विस्तारपूर्वक विचार फिय्रा गया था, श्रौर उन शब्दों के जो-जों झर्थ वा भाव गीता के प्रन्दर अम्पष्ट रूप से वर्णित थे, उन्हें स्पष्ट रूप से दर्शाया गया था । पर हस दूसरे भार की सस्तायना में केवल शब्दों का नही फ्ितु मांगा व सिद्वातो का विवेचन क्रिया गया है, और यह भी स्पष्ट रीति से दर्शाया गया है कि गीता के उद्देग्य ओर उपदेश कहाँ तक अन्य शास्रो से मिलते-जुलते है और कहाँ तक नितानत विपरीन है। और मुक्ति के झ्नेक प्रचल्तित मार्गों से गीता मे बशित मार्गों का क्हों नक भेद्र है । प्रस्तावना-ध्यय




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