श्री विचार दीपक | Shri Vichar Dipak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ २० ]
वार्ल्य मया केलिकलाकलापकै-
नींते च नारीनिरतेन योवनम ॥
बूद्धोइधुना कि नु करोसि साधन
मुक्तेशंथा में खलु जीवित गतम॥१०॥
टीका--(वाल्य ) कहिये सत्शाखके विचारविषे
उपयोगि विद्याके अध्ययन करनेका साधन जो वा:
छावस्था थी सो तो मेंनें (केलिकलाकलापक तट कः ) कः
हिंये बाऊकोंके साथ ऋरीडा औ कौ-
घुकोंकरके व्यतीत कर दीनी औ तीर्थयात्रा तथा तप
ञौ महात्मापुरुषोंकी सेवा करनेका साधनभत
यौवनावस्था भी सोभी मेने (सारीनिरतेन 2 ऋहिये
सर्वदाहि खियोंमें आसक्त होनेतें निरंतर तिनहिके
खिंतन भोगविदासादिकॉकरके व्यतीत कर दीनी ॥
औ अब झक्तिसें हीन ओऔं परतंत्रताका स्थान ञओं
सर्व बारी रकूं शिथिल करनेहारी इस ू
+ संसारबंधनसे मुक्त होनेके अथे क्या
साधन करूं काहेतें जैसे एहकूं अधि छगे पीछे
कूपका खोदना च्यर्थ होवे थे तेसेहि चृद्धावस्थाके
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