श्री विचार दीपक | Shri Vichar Dipak

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Shri Vichar Dipak by ब्रह्मानन्द - Brahmanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २० ] वार्ल्य मया केलिकलाकलापकै- नींते च नारीनिरतेन योवनम ॥ बूद्धोइधुना कि नु करोसि साधन मुक्तेशंथा में खलु जीवित गतम॥१०॥ टीका--(वाल्य ) कहिये सत्शाखके विचारविषे उपयोगि विद्याके अध्ययन करनेका साधन जो वा: छावस्था थी सो तो मेंनें (केलिकलाकलापक तट कः ) कः हिंये बाऊकोंके साथ ऋरीडा औ कौ- घुकोंकरके व्यतीत कर दीनी औ तीर्थयात्रा तथा तप ञौ महात्मापुरुषोंकी सेवा करनेका साधनभत यौवनावस्था भी सोभी मेने (सारीनिरतेन 2 ऋहिये सर्वदाहि खियोंमें आसक्त होनेतें निरंतर तिनहिके खिंतन भोगविदासादिकॉकरके व्यतीत कर दीनी ॥ औ अब झक्तिसें हीन ओऔं परतंत्रताका स्थान ञओं सर्व बारी रकूं शिथिल करनेहारी इस ू + संसारबंधनसे मुक्त होनेके अथे क्या साधन करूं काहेतें जैसे एहकूं अधि छगे पीछे कूपका खोदना च्यर्थ होवे थे तेसेहि चृद्धावस्थाके




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