श्रीविचारदीपक | Shreevicharadeepak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shreevicharadeepak by ब्रह्मानन्द - Brahmanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्रह्मानन्द - Brahmanand

Add Infomation AboutBrahmanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
_यात्राहि करी होगी तो तहां कहेहे ( न तीथानि गता- नि) कहिये अंतःकरणकी शुद्धिद्वारा मोक्षपदके देने- हारे जो प्रयाग काशीआदि पतित्र प्रसिद्ध तीथेहें ति- नके समीपभी मेनें कबी गमन नहि किया है ॥ यातें स्व पुरुषार्थोकरके शून्य होनेतें मेरा सवे आयु ( बृथा गत॑ ) कहिये इथाहि व्यतीत हो गया इति ॥ १२९॥ . पुनः जो कोई कहे कि उक्त सत्संगादिंक नहि किये तो कबी एकांत बेठकरके हरिका आराधनहि किया होगा यातें तिसकरकेहि तेरा कल्याण हो जावेगा तो ._ तहां कहेंहे || चतुझ्ज इति-- .. चतुझ्ेजश्चक्रमादायुधः पश्ष- .. निरंजन) स्वभवारतिमंजनः ॥ . स्छतः कदापीह सया न माधघवो..._ वृथाखिले से खलु जीवित गतम्‌॥ ११॥ कप दीका--( चतुझुजः ) कहिये केयूरकटकादि भूष- ररके शोभायमान और जालुपयंत लंबी चतुझ्नुजा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now