स्याद्वादरहस्य भाग - 2 | Syadvadarahasy Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
374
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मध्यमस्याहादग्द्स्थे रण्ड २
दा के उद्ार -+>
यस्य सर्वत्र समता नयेष्र॒ तनयेष्विव ।
तस्यानेकाब्तवादस्य कद दयूनाधिकशेम्र॒षी |
(अध्यात्मोपत्िषत् 9/६9)
जैसे माता को अपने सब वच्चो के प्रति
समान प्यार होता है ठीक वैसे जिस
अलनेकाव्तवाद को सब त्रयो के प्रति समान
हष्ठि होती है उस स्याव्दयाद् को एक नय मे
हीनता की बुल्लि और अठ्य ग़य के प्रति
उच्चता की बुल्दि कैसे होगी ? अर्थात् किसी
भी नय में हीनता या उच्चता की दुल्लि स्याव्दाद्
को नही होती है ।
प्रकाशकीय वक्तब्य (11)
ला (ए)
विपयमार्गदर्शिका (जा)
प्रस्तुत प्रकरण - ट्वितीय खण्ड २१८-०४८
परिशिष्ट (लघुस्याह्टादरहस्य-सम्पूर्ण ) (1-18)
६ तपोरत मरुनिप्रवरश्री पुण्यरत्नविजयजी महाराज
पैन प्रथम आवृति उन श्री पार्ण्व कोम्प्युटर्स,
७ वि.स २००२ मूल्य: रू १४८८-०० रेरे, जनपथ सोसायटी, केग्राल पर,
७» नकल - ६०० घोग़सर, अहमदावादू-360070
फोन - 396246
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व्सवस्धैकार' -क्माणपथान ->9 'कैलांबरकूर्एल॑वरूजव्ड जैन' वसा वि व्स्वाधीक
लीध *« बह अंधे दानिक अध्ययनभील जैन साधु - साध्वीजी भगवत को भेट रूप मे मिल सकेगा । ज्ञाननिधि से प्रस्तत प्रस्तक का
छुड़ण होने से विना मूल्य के गृहस्थ इस पुस्तक को अपनी माल्की में नहीं रख सकते | ः
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