खरा सोना | Khara Sona
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५१9 यारा सोना
कप,
कि माताजी हमछेगोंको क्या उपदेश देती थीं # उन्हींके पुण्य-
पतापसे मुझे पढना-लि्वना सो आया भीर कुछ कुछ उपदेश भी
प्राप्त हुआ। यदि थे अभोतक जीपित रहतों, 'तो मुझे ज्ञीवन
याबा की पूरी पूरी सामरत्री मिल ज्ञाती।
प्रेमा--हाँ, बहिन । तुम्दारी माताज़ीके आशीवादसे में' भी
कुछ कुछ पढने छगी | अगर उस सप्रय कुछ ल्खिना पढना नहीं
सोखती तो सासारिक वाताके विपयर्मे न कुछ सुन ही सकती
और न समझ सकतो ।
गायत्रो--यह पत्र कौन छाया है १
प्रे मा--ओर कौन १ वे रातको आये हैं।
सायतरो -फ्या महावीर बाजू आये हैं ?
प्रेमा-हाँ, आये हैं ।
गायलो--इस रुपाऊे छिये जरा मेरी ओरसे उनके धन्यवाद
अवश्य देना ।
प्रेमा--आप ही देना । थे तुमसे मिलना भी चाहते हैं ।
... ग्ायवों --मैं' उनसे अवश्य मि्ठुगो । इस कृपाके लिये अलग
ही अन्यवाद देना, वहिन । में तो उनले कवकी मिलो रहती , पर
न मालूम वे आकर भी बिना मिले ही क्ये। चुपकेसे भाग जांते
हैं! क्या जाने तूने . क्या फद दिया दे, कि थे सुझले मिलते
भो नहीं । तू डरती है, कि कहों ये भी न उनके पीछे छग जाय ।
प्रेमा-खूब कहनी द्वा--चले, आज ही में तुमको उनके
साथ मिलाये देती ६ |
२
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