संस्कृत प्रवेशिनी भाग 2 | Sanskrit Praveshini Bhag 2

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Sanskrit Praveshini Bhag 2  by श्रीलाल जैन - Srilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ अथम भागपर- कहीं प्रमादवश या बुद्धिअमसे अशुद्धियां रहगई हों अथवा कहीं पर कुछ चुटियां आगई हो तो उनसे हमें सूचित करें जिससे कि द्वितीयसंस्क- रणमें वे सब दोष निकार दिये जाय । कलकत्ता | ! विद्वत्समाजका सेवक ३०--११--१६ , भीलाल जैन संस्कृतप्रवेशिनीके सहायक अंथ जैनेंद्रव्याकरण, चंद्रप्रभचारित, घमेसहश्रावकाचार, सुभाषितरत्न- संदोह, क्षत्रचूडामाणे,आराघनाकथाकीष, सामायेक पाठ, पर्मेशमेभ्युद्य , महावीरपुराण, श्रेणिकचरित, हेमलिगानुशासन, इसब्नीतिकथा, संस्क्ृत- शिक्षा, संस्क्रतशिक्षिका, संस्कृतमार्गोपदेशिका, संस्क्ृतप्रवेश, दुश कुमारचारित, हितोपदेश, गणप्रदीप | अभिज्ञानशाकुंतल, कादंबरी, तत्त्वाथसूत्र, एडस्‌ हू ठृसलेशन इन द्ू सस्क्ृत, वृहत्त्वयंभस्तोत्र । प्रथमभागपर समाचारपत्रों की संमतियां--- सरस्वती । अह पुस्तक इसलिये बनाई गई है जिसमें सस्क्ृत भाषाकी सज्ञाओ और धातु- ओ आदिके रूपोका ज्ञान विद्यार्थीकी होजाय और उन्हे सस्कृतमें चातचीत करना आजाय । “इस भागमे शब्दोके प्रथमा, द्वितीया तथा सबोधन विभक्तीके, धातु- ओऑमें भ्वादि और तुदादि गणीय धातुओंके वर्तमान, भूत, भविष्यत और आज्ञा अर्थके रूप बतलाये गये है ” सस्छृतसे हिंदी ओर हिंदीसे ससक्ृत अनुवाद करनेके लिये पाठ भी दिये गये हैं | शुद्ध करनेके लिये अज्जुद्ध पद्‌ भी दिये गये है। पु- स्तककी रचनामें जैनव्याकरणोंका अनुसरण किया गया है जिस प्रयोजनके लिये यद्द पुस्तक लिखी गईं है उसकी बहुत कुछ सिद्धि इससे दो सक्ती है १ विभक्ति और क्मिक्ती दोनो ही शब्द है हस्व इकारात क्तिन्‌ अत्ययात तो विना ही ब्लीत्वथोतक प्रद्ययके ल्लीलिंग है और क्तिच्‌ प्रत्यात दीघ ईकारात च्लीत्त दूयोतक डीप्रत्ययात है। जैनेंद्र व्याकरणमें इस विभक्ती शब्दसे इसकेस्वरोंमे प्‌ ओर




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