विपूव कोष | Vipuk Kosh

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Vipuk Kosh by नगेन्द्र नाथ - Nagendra Nath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुद्रातत्त्व ( पाश्वात्य ) श्हृ 'भौर चित्रकछाका भदुभुत निद्शग है, जगत्मँ उलकी उपमा गहदी' । सूत्तिशिक्पों आइयोनिया अतुछ कीसति | छोड़ गई हैं! पाश्चात्य प्रोक्न शिव्पशाल्ाफे आदर्श पर इटली और सिसलोका मुद्राशिष्प विशेष उल्लेखनीय है । इस विद्यालयके आदर्शा'ने केवल फप्तनीय सौन्दर्णका विएले- | पन फरनेंमे कोशिश की थी। साइराफ्युसका पार्सिफोन । कैचल विलासविह॒ला झुन्दरी वालिकामांव है। उनके 'सुन्दूर नेत्र किसी मानसिक भावके प्रकाशक नहीं! छत्निम सौन्दर्यमें इस स्थानका मुद्राशिव्प अद्वितीय हैं। 'इय्लीका मुदाशिषप वहुत कुछ मध्य श्रीसके जैसा हैं। सिसलीका मुद्रासौन्दर्ण उस देशके विशाल चैसवका परिचय देता है । सिसछीकी यह ऐश्वर्ण-सम्पद ही उसकी पराधोनताका प्रधान कारण दै। कार्थ जियसों- के आक्रमणसे सिसलीने थोड़े द्वो दिनोंके अन्दर खाघीनता-रल खो दिया था। ज्येप्ठ द्योनिसियसने भी सिसलीफे मुद्रासौन्दर्ण पर मोदित हो उस पर आक- मण कर घोर भत्यांचार क्रिये थे | परवत्तीकारमें रेजियम नगरके पिधागोरसने शिक्ष्पचिधामें विशेष ख्याति पाई थी। साइराक्युज और सिज़ियसकोी मुद्ा दी पाश्चात्य शिव्पविभागमें श्रेष्ठ आसनकों अधिकार किये हुए दें । ओक-सुद्ाशिव्पके वाद क्रीट द्वीपका मुद्राशिल्प उले फनोय है। यहां हेहसका दो प्रभाव फैला हुआ था। क्रीय्वासो दूसरोका अनुकरण करके ही मुद्राडित किया करते ये। किन्तु प्राकृतिक पदार्थके चिल्रणमें इस सथानके मुद्र शशिवपने अच्छो उन्नति को थी । इन्होंने मुठा- खएड पर देंषद्रेषियोंके विल्लोके साथ पुष्पपल्बसे आच्छादित पादपकी अवतारणा की है। इनके शिल्पर्मे खझत्निमता बहुत थोड़ी देखी जाती है। अनेक चिपर्यामें क्रीटका मुद्राशिब्प मौलिक है 1 ओोक छोग किस प्रकार ढांचेमे मुद्रा प्रस्तुत करते थे उसे डाकूर बागनने बहुत खोज कर निकाला दै। उनका कहना है, कि चद्द ढात्रा ३॥ इश्च ऊचे ताप्र या कॉसेका वना था। उसका शक्षाकार ठोक डमरूके जैसा था। डसको एफ पीठ पर सछीकीय (3ल०ःत४) राजाओोंको मुद्दा औौर दूसरी पीठ पर भॉस्फाल्स ( एण[माक्ौ05 )- की उपचिष्ट आपलोकी मूर्ति चिह्नित द्वीती थी। एक ही समयमे किस प्रक्रार दोनों काम द्वोता था उसका आज भी निरूपण नददी' हो सका है। रोमकोी मुद्रा भी डसी प्रणाकीसे प्रध्चुत दोवो थी। प्रसिद्ध मुद्रावस्यञ्- के प्रखेल्ठ (8!वाल) की मुद्राके भ्रेणीविमागकी पया्लोचना बारनेसे अनेक रहए्य मातम हो सफते हैं। उन्होंने स्पेनसे विभाग आरम्म किया है। पोछे गलछ वा फ्रान्‍्स और डसके वाद ब्रिटेन है । ये सव मुद्गाण' प्रोक-प्रणालीकी अपछृष्ट अजुकरणमात्र हैं । माकिद्रनके श्य किलिपकी मुद्रा ही इसका हृष्टान्त है। उसके बाद रोम-सामप्राज्यकी सौप्प-मुद्रा उन सब प्रदेशोंमें प्रचछित हुई थी। पीछे स्पेन- की ताम्नमुद्राका सर्वत्र प्रचार हुआ। जिस समय आइ- योनिया और फोसियाका समुद्र-याणिज्य चारों भोर फैला हुआ था उस समय दिम्पानियायासी श्रोक-भादश पर मुद्रा प्रतुत फरते थे। पीछे रोम और कार्थेज्रका सुद्राशिवप पुत्तेगालमें प्रचारित हुआ । ईसा जन्मसे पहले ४धी सदीमें स्पेनमुद्रा पर पनिक प्रभाव दिखाई दिया। उसके बाद वारकिदु राजाओं (/९४संव०)-फे भाजश्ञाठुसार खु० पू० २३४ से २१० तक स्पैनमें कार्थेज्ञीय मुदृाफा प्रचार रद्दा 1 अनन्तर सुपैनकी मुद्रामें फिनिक्रीयगणका प्रभाव दिष्वाई देता है | वह मुद्रा किनिक्रीय भुद्राके समान भारी थी, किन्तु उसका आकार कार्धेज्ञीय मुद्राज्ययायी था । अत्नतत्वचित्‌ सिनेर जोबेल ( 8९1०४ 2०४9० )-क्ला कहना है, छि थे सब्र मुद्राए' पहले स्पेनमें दी प्रस्तुत हुई, पीछे दूसरों ज्गद्द इसका अनुकरण हुआ । ईसा- जन्मके २०६ चर्ष पहलेसे छाटिन भक्षरकी रोमक मुद्राका स्पेनमें भार था | इन सब मुद्राओंमें जिस जातिसे मुद्रा यनाई ज्ञातो थो उसका नाम अड्वित है। परवर्तीकारकी स्पेन-मुद्रामें दो वैद् हल चलाते हुए अट्डित देखे ज्ञाते हैं। किसो मुद्रामें राजकोय अट्टालिका -भड्डित है। किसी किसोमें. देशका उत्पन्न: द्ृष्य खोदा हुआ है। जैसे,--मछली वा अनाजकी सी'क, दाखकी लताका *समूद भादि । | गालकी खर्ण॑मुद्राए' श्रोकप्रणालोसे वनी हुई हैं । “किन्धु सभी रैप्पमुद्राए' स्थानीय मुदाशिव्पसे अद्धित -हैं। «किसी किसीमें स्पेतकना प्रभाव दिखाई. दैता है !




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