युद्ध उत्तरार्द्ध | Shri Madwalmiki Ramayan Yudh Uttrardh Viii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
710
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२)
, का न्रस्त होना | लक्ष्मण जी और अतिकाय का यद्ध।
लद््मण जी की मार से अतिकाय के कठे हुए सिर का
भूमि पर गिरना |
चहत्तरवा सग ७9३---9७७
अतिकाय का मारा जाना सुन, रावण का उद्दिप्न
होना | लड्ढा को रक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध करने की
रावण द्वारा आज्ञा ।
तिहत्तरवाँ सगे ७७८--७६७
पुत्रों ओर भाइयों के, युद्ध में मारे जाने पर, शोक-
विहल- रावण को, अपने पराक्रम का बखान कर,
इन्द्रजीत का धीरज बँधाना सेना सहित इन्द्रजीत का.“
युद्ध के लिये निकलना। राक्षसों और वानरों का घोर
युद्ध । समस्त वानरयूथपतियों को इन्द्रजीत द्वारा घायत्न
देख और लक्ष्मण सहित अपने ऊपर उसको बाणवृषिट
करते देख, श्रीरामचन्द्र जी की लक्ष्मण जी से बातचीत ।
इन्द्रजीव का लड्ढा में: प्रवेश |
चौहत्तरवाँ सगे ७६७--८ १६
विभीषण द्वारा बानरों को सान्त्वना-प्रदान। हाथ में
मशाल ले हलुमान और विभीषंण का रणत्तेत्र में घूम घूम
कर जीवित वानरों को आश्वासन-प्रदान | घायत्न जाम्ब-
वान से विभीषण की भेंट | जाम्ववान का विभोषण से
हनुमान जी का कुशल्-प्रश्न | इस प्रश्न से विभीषण का
विस्मित होना और जाम्बवान द्वारा विभीषण का समा-
धान किआ जाना | ओषधि-पवत लाने के लिए जाम्बवान
क्रा हनुमान जी को आदेश | हनुमान जी का गन और
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