आदर्श महात्मागणा | Adarsh mahatmagna

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Adarsh mahatmagna by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwarkaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: बुद्धदेव । ` १९ रानी को नोंद्‌ उचटी, उसने बहुत प्रसन्न होकर स्वप्त का खारा हाल महाराज से कहा । ज्योतिषियों ने स्वप्न का चृत्तान्‍्त सुन कर. यह कलहाः ल्योतिर्विद्‌-महाराज ! प्क महापुरूप मायादेवी के गभे में आपका पत्र होने के लिये जन्‍म ग्रहण करेगा। चुद्धावस्था में सन्‍तान होने की सम्भावना का चच रुन महाराज एवं महारानी--दोनों बहुत प्रसन्न हुए | यथासमय मायादेवी गर्भवती हुईं | एक दिन महाराज के सामने मायादेवी ने मातयह जाने को इच्छा प्रकट की। शुद्धोदन श्रपनो परिय पल्ली री श्रमिलाषा सदा पुरी क्रिया करते थे; इसलिये इच्छा न रहते भी, उन्होंने विद्यादेधी का अपने पिठ-य्ृह जाने का आदेश दिया। यात्रा का शभ मुह सुधाने के लिये महाराज ने एक ज्यातिर्षिद के। बुलाया | उसने शुभ मुद्दे निकाला | मायादेवी ने डली दिन अपने पितृणह की ओर यात्रा की | मायादेवी, मार्ग में बन पर्वत आदि की प्राकतिक शोभा देख कर, बहुत प्रसन्न होती थो जिस समय वह लस्विनी नामः उपचन के समीप होकर निकली, उस समय वहाँ की शोभा ने उसके चित्त पर इतना प्रभाव डाला कि वह रथ से उत्तर पड़ी | दस उपवन मे घप्र फिर कर. चह थक्त कर पक कृक्ष के नीचे बेटी हुई थकावद दर कर रही थी कि उसी समय उसके गर्भे- वेदन! आरम्भ हुईं। उसी पेड़ के नीचे, उसने वसनन्‍्तकाल की पूर्णमा का खुलज्षण-युक्त एक पुत्ररल्ल जनां। महाराज इस सुखंबवाद का सनते ही, महांरानी और नवजात बालक को उस उपचन से अपने घर ले गये | जेसे पह्महीन सरोचर. गन्धरहित पुप्पहीन उच्यान, फलशल्य चत्त एव सतीत्व-विहीन रमणी शोभा




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