युद्ध उत्तरार्द्ध | Shri Madwalmiki Ramayan Yudh Uttrardh Viii

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Shri Madwalmiki Ramayan Yudh Uttrardh Viii by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwarkaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) , का न्रस्त होना | लक्ष्मण जी और अतिकाय का यद्ध। लद््मण जी की मार से अतिकाय के कठे हुए सिर का भूमि पर गिरना | चहत्तरवा सग ७9३---9७७ अतिकाय का मारा जाना सुन, रावण का उद्दिप्न होना | लड्ढा को रक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध करने की रावण द्वारा आज्ञा । तिहत्तरवाँ सगे ७७८--७६७ पुत्रों ओर भाइयों के, युद्ध में मारे जाने पर, शोक- विहल- रावण को, अपने पराक्रम का बखान कर, इन्द्रजीत का धीरज बँधाना सेना सहित इन्द्रजीत का.“ युद्ध के लिये निकलना। राक्षसों और वानरों का घोर युद्ध । समस्त वानरयूथपतियों को इन्द्रजीत द्वारा घायत्न देख और लक्ष्मण सहित अपने ऊपर उसको बाणवृषिट करते देख, श्रीरामचन्द्र जी की लक्ष्मण जी से बातचीत । इन्द्रजीव का लड्ढा में: प्रवेश | चौहत्तरवाँ सगे ७६७--८ १६ विभीषण द्वारा बानरों को सान्त्वना-प्रदान। हाथ में मशाल ले हलुमान और विभीषंण का रणत्तेत्र में घूम घूम कर जीवित वानरों को आश्वासन-प्रदान | घायत्न जाम्ब- वान से विभीषण की भेंट | जाम्ववान का विभोषण से हनुमान जी का कुशल्-प्रश्न | इस प्रश्न से विभीषण का विस्मित होना और जाम्बवान द्वारा विभीषण का समा- धान किआ जाना | ओषधि-पवत लाने के लिए जाम्बवान क्रा हनुमान जी को आदेश | हनुमान जी का गन और




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