करण - संवाद | Karan - Samvad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
787 KB
कुल पष्ठ :
56
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९३)
कर्मचन्द्र-श्रीमान् महाराजाधिराज और सज्ञनों | स््रभाव-
चद्र क यचन अभिमान पूर्ण हें । बेस ही यउरघु कालचन्द्र भी
भ्रमजनक आत्मक्ापा के अतिरिक्त और छुछ भी प्रकट नहीं
कर सका। सच्ची बात तो यह हैं कि काल और स्वभार॑
दोना मर पीछे चलने याल ह। स्पभाव जो पनाने प्राला
तथा काल को नियमित करने बाला में ही #। एक ही सहर
से एक ही समय दो यालक उत्पन होते हैं, उनमे एपा सुरूप
और दूमरा उुरूप, एक युद्धिमान और टूसरा मूरे, एक मठ और
टमरा चालाक ( चतुर ) एक साभाग्यशीलत और 'एसरा छुमोंगी
पनता है यह उय काल ओर स्पभाय से हाता दे ? कदापि नहीं ।
जनन््मताल टोनों का समाय है, इसी प्रकार सोनों एक ही माँ
बाप के शुक्र और शाणित स ढ पन्न हए हैं, एक ही उतर मे
साथ रहे हैं, एफ हो नातावरण में बृद्धिंगत हुए ह इससे स्वभाय
का प्रभाव सोनों पर समान ही हथ्रा है, ता भी जो भिन्नता
ओऑपों स तेसने में आती है उसका निर्णय फ़रनयाला मेरे
सियाय कौन है! में कहेँगा कि यह परिणाम मरे आवार पर
ली है। जिसन पूत जन्म में अच््य फर्म क्रिय उसका असर
सयाग गआत्त हुए और जिसन युर कर्म किय उसका प्रतिदरल
सयाग प्राप्त हुए । सच हा कहा € कि--
कम प्रताप तुरग सिलायत, क्मे से छुत्रपतिपन दवा, ।
कम से पुत्र सुपुत्र कद्दावत, कर्म से और बड़ा नहि कोई ॥
कम फ़िर्या जब रावन को, तब सान बी लक दिनु भ दवा सोई।
आप यहा करो छद्ठा सुरख कम करे सो करे नहि कोई ॥
एक राचा दूसरा रक, एम रोगी दूसरा निरोगी, एक
घनाह््य दूसरा द्रिंद्रो, एक पाली म॑ बेठने बाला दूसरा
पालरी उठाने पाला, एक आ्ाअपयतेऊ दूसरा आज्ञा पालक,
एक भनावादित यत्तु श्राप्त करने वाला दूसरा इच्छा से विपरीक्ष
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