प्रदयुमन चरित्र | Pradyuman Charitr

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Book Image : प्रदयुमन चरित्र  - Pradyuman Charitr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुछ भब करके वह तापस, देत्य बना है । उस 'धृम्रकेतु' के मन में, रोप धना है । है वेर-स्नेह भी होते, बहुत टिकाऊ ।॥ प्रद्यु्न-६४ ॥। है वेठ बिमान में, 'धृत्रकेतु! जब आया । 'ऋक्मिणी' महल से आगे नहीं वढ़ पाया। | है ज्ञान से जाना पूबंशत्रु बतलाऊँ। भ्रद्युस्त-६६।। 'ऋक्मिणी' महू में देव, वही है आबे | अदृश्य होय शिशु लेय, गगन में जावे । कहे दुष्ट | तुके कर्मो का मजामे चखाऊँ। प्रदुम्त-६७॥ बेताढय शेल पर आके, खट्डा कोना ! रख बावन कर की शिला, दवा है दोना । ले बच्चू | किये का भोगों, फछ बतढाऊं॥ प्रदुम्न-६८ ॥ है चरम शरीरी जीव, मध्य नहीं मरता । वह दवा हुआ भी सांस जोर से भरता । हिल रद्दी सास से शिछा, यही दिखलाऊंँ। प्रद्युम्न-६६ ॥ जता के ध्वरः-- हे 'यमसंवर' नृप मेघकूट” के स्वामी ! दैकनकमाला' रानी उनकी अनुगामी ! घेठ विमान में आये, वन में वताऊ ॥ प्रद्युस्त-१०० ॥ हिलती शिला को देखि, चकित हो जावे । शिला हटा फे शिश् ु को छाती लगावे | यह मिला दिव्य उपहार तुम्दे वकसाऊ ॥प्रयुम्न-१०१ ॥ ( १७ )




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