प्रदयुमन चरित्र | Pradyuman Charitr
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुछ भब करके वह तापस, देत्य बना है ।
उस 'धृम्रकेतु' के मन में, रोप धना है ।
है वेर-स्नेह भी होते, बहुत टिकाऊ ।॥ प्रद्यु्न-६४ ॥।
है वेठ बिमान में, 'धृत्रकेतु! जब आया ।
'ऋक्मिणी' महल से आगे नहीं वढ़ पाया। |
है ज्ञान से जाना पूबंशत्रु बतलाऊँ। भ्रद्युस्त-६६।।
'ऋक्मिणी' महू में देव, वही है आबे |
अदृश्य होय शिशु लेय, गगन में जावे ।
कहे दुष्ट | तुके कर्मो का मजामे चखाऊँ। प्रदुम्त-६७॥
बेताढय शेल पर आके, खट्डा कोना !
रख बावन कर की शिला, दवा है दोना ।
ले बच्चू | किये का भोगों, फछ बतढाऊं॥ प्रदुम्न-६८ ॥
है चरम शरीरी जीव, मध्य नहीं मरता ।
वह दवा हुआ भी सांस जोर से भरता ।
हिल रद्दी सास से शिछा, यही दिखलाऊंँ। प्रद्युम्न-६६ ॥
जता के ध्वरः--
हे 'यमसंवर' नृप मेघकूट” के स्वामी !
दैकनकमाला' रानी उनकी अनुगामी !
घेठ विमान में आये, वन में वताऊ ॥ प्रद्युस्त-१०० ॥
हिलती शिला को देखि, चकित हो जावे ।
शिला हटा फे शिश् ु को छाती लगावे |
यह मिला दिव्य उपहार तुम्दे वकसाऊ ॥प्रयुम्न-१०१ ॥
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