प्रदयुमन चरित्र | Pradyuman Charitr

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pradyuman Charitr  by मुनि पार्श्व - Muni Parshv

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुनि पार्श्व - Muni Parshv

Add Infomation AboutMuni Parshv

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कुछ भब करके वह तापस, देत्य बना है । उस 'धृम्रकेतु' के मन में, रोप धना है । है वेर-स्नेह भी होते, बहुत टिकाऊ ।॥ प्रद्यु्न-६४ ॥। है वेठ बिमान में, 'धृत्रकेतु! जब आया । 'ऋक्मिणी' महल से आगे नहीं वढ़ पाया। | है ज्ञान से जाना पूबंशत्रु बतलाऊँ। भ्रद्युस्त-६६।। 'ऋक्मिणी' महू में देव, वही है आबे | अदृश्य होय शिशु लेय, गगन में जावे । कहे दुष्ट | तुके कर्मो का मजामे चखाऊँ। प्रदुम्त-६७॥ बेताढय शेल पर आके, खट्डा कोना ! रख बावन कर की शिला, दवा है दोना । ले बच्चू | किये का भोगों, फछ बतढाऊं॥ प्रदुम्न-६८ ॥ है चरम शरीरी जीव, मध्य नहीं मरता । वह दवा हुआ भी सांस जोर से भरता । हिल रद्दी सास से शिछा, यही दिखलाऊंँ। प्रद्युम्न-६६ ॥ जता के ध्वरः-- हे 'यमसंवर' नृप मेघकूट” के स्वामी ! दैकनकमाला' रानी उनकी अनुगामी ! घेठ विमान में आये, वन में वताऊ ॥ प्रद्युस्त-१०० ॥ हिलती शिला को देखि, चकित हो जावे । शिला हटा फे शिश् ु को छाती लगावे | यह मिला दिव्य उपहार तुम्दे वकसाऊ ॥प्रयुम्न-१०१ ॥ ( १७ )




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now